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आज पूरे देश में जश्न का माहोल है चारो तरफ अन्ना ही अन्ना है और हो भी क्यों नही ७४ साल के एक बजुर्ग में हमें एक एसा नेत्रित्व मिला है जो देश में देशभक्ति की भावनाओं को जगाने में सफल हुआ है .अन्ना और उनकी टीम ने जो जनसमर्थन हासिल किया और लोगो को जिस तरह से संघठित किया अपने हको के पर्ती वह देश तो क्या हमारे देश के राजनीतिज्ञ भी नही भूला पाएंगे .लेकिन यहाँ एक बात मेरे समझ में अब तक नही आ रही कुछ एसा ही माहोल बाबा रामदेव ने भी तैयार किया था हर गाव हर शहर जाकर काले धन और भ्रष्टाचार के पर्ती देश की जनभावनाओं को उबाल दिया था. लेकिन बड़ा ही आश्चर्य होता है जब बाबा और रामदेव जी के साथ बर्ताव में अंतर दिखते है .यह बात तो ठीक है की बाबा के पास अनुभव कम हो सकता है या फिर बाबा की टीम में इतने अनुभवी लोग नही थे . लेकिन यहाँ यह बात समझ से परे है की जो मीडिया बाबा से तीखे सवाल कर रहा था वही मीडिया अन्ना जी से मीठे और सवाल भी नही कर रहा था बल्कि यु कहना सही होगा की वही मीडिया अन्नागान में लिप्त था . चलिए छोड़िये पुलिस भी कुछ कम नही थी उस रात ? चार जून की वह काली रात जिसमे पुलिस के हाथ में डंडे थे और निहत्थे लोग सो रहे थे .नाटकीय ढंग से पुलिसिया कारवाई और सोए हुए लोगो को डंडो के बल पर रामलीला मैदान से खदेड़ना किसी रावनलिला या कंसलिला या यु कहे तालिबानी कारवाई से कम नही था .इस आन्दोलन की सफलता कही न कही बाबा रामदेव के आन्दोलन को विफल करवाने वालो को भी जाती है .इसलिए इस आन्दोलन के जश्न में बाबा रामदेव की बहुत बड़ी भूमिका है जिसे अन्ना टीम को या इस देश को कतई नज़रंदाज़ नही करना चाहिए
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