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अन्ना का आन्दोलन भ्रष्टाचार के पर्ती जागरूकता पैदा करता बेशक लगता हो लेकिन एक बात तो सच है अन्ना आन्दोलन की वजह से शीला की कुर्सी बच गयी है .कोम्न्वेल्थ घोटालो को लेकर जो जनता दिल्ली की मुख्यमंत्री को कोस रही थी और विपक्ष भी अपनी धार पैनी कर रहा था वही जनता अपनी उर्जा को वन्दे मातरम और अन्ना आन्दोलन में लगाने लगी .वैसे कुछ लोग यह कह सकते है की इस आन्दोलन का लाभ अगले चुनावों में विपक्ष को मिलेगा .परन्तु सच तो यह है अगले चुनावो में अभी सालो का वक्त बचा है और सरकार का कार्यकाल अभी लंबा है .और तब तक हमारे देश के लोग भूल जायेंगे कोन सा आन्दोलन और कोन से घोटाले और कोन से अन्ना ..जिस तरह से मिडिया ने अन्ना का भरपूर साथ दिया कही न कही शक होता है दाल में कुछ तो काला है .क्यों की जो मिडिया राष्ट्रहित के मुद्दों पर कोई टिप्पणी तक नही करता वही मीडिया रात दिन अन्ना के आन्दोलन को हवा देता रहा और उस पर कोई करवाई भी नही हुई .बेशक से अन्ना जी एक सवच्छ छवि के जननेता है लेकिन लगता है वह राजनीती के शिकार हुए है . जिस देश में सांसद तो क्या कैबिनेट मंत्री भी कोई टिप्पणी देने में पार्टी हाईकमान के आदेश का इंतज़ार करते हो वह अगर खुलकर पार्टी की बगावत करे और उन पर कोई करवाई न हो तो क्या कहिएगा ? गड़बड़ तो है कही न कही लेकिन परते खुलने में वक्त लगेगा
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