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अन्ना vs बाबा रामदेव

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देखिये इस देश में एसे लोग बहुत जयादा है जो अन्ना के आन्दोलन को सफल बता रहे है और अन्ना को महात्मा गाँधी का दर्ज़ा दे रहे है और बाबा रामदेव जी को एक ठग का.उन पर तमाम तरह के लांछन लगा रहे है परन्तु मै एसा नही मानता .चुकी अन्ना का आन्दोलन महज़ एक सस्ती लोक्परियता सा लगता है .अन्ना की जो मांगे थी वह यह थी और सरकार ने जो मांगे मानी मै उनका जिक्र नीचे कर रहा हूँ .

पहली मांग थी अन्ना टीम की पहली मांग : सरकार अपना कमजोर बिल वापस ले
– सरकार ने बिल तो वापस नहीं ही लिया, उलटा चार नये बिल और मढ़ दिये स्थायी समिति के माथे…

दूसरी मांग थी : सरकार लोकपाल बिल के दायरे में प्रधान मंत्री को लाये
– सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया। प्रधानमंत्री ने अपना पल्ला झाड़ते हुए कह दिया कि “मैं तो चाहता हूँ कि प्रधानमंत्री दायरे में ए परन्तु मेरे कुछ मंत्री । फ़िलहाल टीम अन्ना को थमाए गये लॉलीपॉप में (यानी समझौते के पत्र में) इसका कोई जिक्र तक नहीं है।

तीसरी मांग थी : लोकपाल के दायरे में सांसद भी हों
– “लॉलीपॉप” में सरकार ने इस सम्बन्ध में भी कोई बात नहीं कही है।

चौथी मांग थी : तीस अगस्त तक बिल संसद में पास हो (क्योंकि 1 सितम्बर से रामलीला मैदान दूसरे आंदोलन के लिए बुक है)
– तीस अगस्त तो छोड़िये, सरकार ने जनलोकपाल बिल पास करने के लिए कोई समय सीमा तक नहीं बताई है कि वह बिल कब तक पास करवाएगी।

पाँचवीं मांग थी : लोकपाल की नियुक्ति कमेटी में सरकारी हस्तक्षेप न्यूनतम हो
– देश को थमाए गये “झुनझुने” में सरकार ने इस बारे में कोई वादा नहीं किया है।

छठवीं मांग (जो अन्त में जोड़ी गई) :- जनलोकपाल बिल पर संसद में चर्चा, नियम 184 (वोटिंग) के तहत कराई जाए
– चर्चा 184 के तहत नहीं हुई, ना तो वोटिंग हुई

उपरोक्त के अतिरिक्त तीन अन्य वह मांगें जिनका जिक्र सरकार ने “टीम अन्ना” को आज दिए गए समझौते के पत्र में किया है वह हैं –

(1) सिटिज़न चार्टर लागू करना, (2) निचले तबके के सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाना, (3) राज्यों में लोकायुक्तों कि नियुक्ति करना

प्रणब मुखर्जी द्वारा संसद में स्पष्ट कहा गया है कि इन तीनों मांगों के सन्दर्भ में सदन के सदस्यों की भावनाओं से अवगत कराते हुए लोकपाल बिल में संविधान की सीमाओं के अंदर इन तीन मांगों को शामिल करने पर विचार हेतु आप (यानी लोकसभा अध्यक्ष) इसे स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजें। अब आप बताएं कि कौन जीता..? लोकतन्त्र की कैसी जीत हुई…? और टीम अण्णा या टीम संसद में से किसकी जीत हुई…?

अब दूसरी तरफ है बाबा रामदेव जिनका समर्थक मै नही हूँ परन्तु उनके विचारो का समर्थन करता हूँ . जो लाठिया खाने के बाद भी फिर से स्वाभिमान आन्दोलन छेड़ रहे है .उन पर तमाम तरह के केस बने फिर भी वह एक सच्चे देशभक्त की तरह अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रहे है .आप ही बताइए क्या एसे साधू को ठग या फिर व्यापारी कहना उचित है ? जो देश में कला धन लेन की बात करता हो ,जो सव्देशी की बात करता हो .आखिर वह सब किसके लिए कर रहे है ?देश की जनता के लिए फिर भी उन पर भद्दे आरोप लग रहे है .देखिये मैंने अन्ना के समर्थन में भी हिस्सा लिया परन्तु रामदेव जी आन्दोलन में किसी कारणवश हिस्सा नही ले सका परन्तु अब जिस तरह से बाबा रामदेव ने फिर से एक शुरुआत की है लग रहा है बाबा रामदेव एक बड़ा आन्दोलन खड़ा करेंगे .चुकी बाबा मिडिया की कवरेज से लोकप्रिय नही हुए उन्होंने हर गाव जाकर एक अलख जगाई है देशवासियों में भ्रष्टाचार के पर्ती .

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