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दो रोटी के लिए धर्म बेचने को मजबूर लोग ?

ajad log
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मित्रो बड़ा आसान है किसी पर धर्म बेचने का आरोप लगा देना परन्तु उतना ही मुश्किल है उसकी तकलीफों को झांककर देखना उन्हें समझना . चाय की चुसकिया लेकर बेशक हम अखबार में और इन्टरनेट के जरिये धर्मपरिवर्तन पर घर में या दफ्तर ,बसों या रेल में कभी कभार साल या दो चार माह में दस पन्द्रह मिनट की बहस करे .परन्तु बड़ा ही मुस्किल है उन लोगो की जिन्दगी जीना “जो दो वक्त की रोटी के लिए धर्म बेच रहे है .मध्य प्रदेश का एक जिला है (झाबुआ)जहा गरीब आदिवासि लोगो के पास पहनने के लिए कपडे नही ,चप्पल ,जुटा नही ,यहाँ तक की दो वक्त की रोटी तक नही .झाबुआ के अस्सी फीसदी आदिवासी लोग इसाई धर्म सवीकार चुके है .यह बदलाव केवल तीस सालो में हुआ है ?जी हां मात्र तीस साल ……….न ही इन्हें खाने के लिए अनाज मिलता है और न ही पैसे है ,स्कूल है पर अध्यापक ,अध्यापिकाए नही है .नग्न वक्ष और लाज बचाने
के लायक कमर में लिपटी अंगोछी के साथ उनकी महिलाएं व जवान लड़कियां जंगल और खेत-खलिहानों में काम करती नजर आती हैं.यह स्थिति है इस देश में जो कही न कही सोचने पर मजबूर करती है क्या इन हालातो में हम ख़्वाब पाले बठे है हमारा भारत बनेगा विश्वगुरु ?जहा ७०%लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन वय्तित करते है .झाबुआ में 45 से ज्यादा चर्च काम कर रहे हैं। इस छोटे जिले में 45 चर्च का होना किसी आश्चर्य से कम नहीं। इनमें 15 चर्च तो काफी बड़े और पुराने हैं। इन्ही चर्चो द्वारा धर्मान्त्र्ण का खेल जारी होता है मदद के नाम पर ?बड़ा आसान है इन चर्चो पर ऊँगली उठाना . परन्तु उतना ही मुश्किल है इन आदिवासियों की मदद करना .बेशक से धर्मान्त्र्ण के जरिये ही सही आदिवासियों के पेट में दो रोटी तो डाल ही रहा है चर्च.जब ऐसी खबरों का हमें पता लगता है तब संभव सी बात है हम लोग धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को इसके लिए जिम्मेदार थराते है परन्तु एक बात साफ़ करने की जरुरत है की झाबुआ जिला मध्य प्रदेश में है जहा शायद हिन्दुओ की सरकार है .सोचिये उन जगहों का हाल जहा हिन्दुओ की सरकार नही है वहा क्या हाल होंगे ? .परन्तु इन सब के लिए जितनी सरकार की जिम्मेदारी है उतनी ही आम आदमी की भी है चुकी इस देश का आम आदमी खुद को इस देश का नागरिक कहता है .बड़ा आसान है अन्ना आन्दोलन में मीडिया के कैमरों में आने के लिए वन्दे मातरम कहना बड़ा ही आसान है अन्ना या मोदी के उपवास को देखकर भावनात्मक होना परन्तु यह भी सच्चाई है .इस देश में लाखो लोग उपवास करते है .मजबूरी में ही सही ……..बेशक सरकारे अपना धर्म सही तरीके से नही निभा पा रही .लेकिन हिन्दू समुदाय भी अपना धर्म नही निभा रहा है .जब भी इस तरह की कोई घटना आती है तब हिन्दू केवल “संघ और बजरंग दल “की तरफ देखता है .मै पूछता हूँ क्या आर्थिक रूप से सशक्त हिन्दुओ का कोई भी फ़र्ज़ नही है अपने धर्म के प्रति ?प्रशन उठता है …….क्या हम और हमारे स्वार्थ इतने बढ़ गये है की हम अपने देशवासियों की मदद तक नही कर सकते ? फिर भी हम अपने संस्कारों को महान बताते है .मै तो उस चर्च को हमसे कई गुना बेहतर मानता हूँ जो इन आदिवासियों को दवा -दारू देता है उन हिन्दुओ की बजाय जो धन के पीछे अपने देश के प्रति कर्तव्यो को भूल चुके है स्वार्थी हो चुके है .

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