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धर्मनिरपक्ष पार्टियों के लिए खतरा

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देश की तमाम पार्टियों की नजर मुस्लिम वोटरों पर टिकी रहती है मुस्लिम वोटो के लिए किसी भी तुष्टिकर्ण पर उतरने को तैयार रहती है देश की कुछ पार्टिया .जिसके तहत ध्र्मंत्र्ण को बढ़ावा देना ,हज यात्रा में सब्सिडी ,और भी तमाम तरह की मुसलमानों को सुविधा देना जो शायद किसी इस्लामिक देश में भी मुसलमानों के पास नही है .यूपी ,केरला ,असम (जहा बंगलादेशी घुस्पठिये भी अच्छीखासी मात्रा में रहते है ) दिल्ली ,बंगाल ,महारास्त्र राजस्थान ऐसे राज्य है जहा मुस्लिम बहुत अधिकता में है .इन पार्टियों की दृष्टि भी इन्ही वोटो पर रहती है परन्तु लगता है अब इस देश में मुस्लिम इन पार्टियों को वोट न दे ? चोकिये मत बसपा ,कोंग्रेस ,सपा जैसी पार्टियों के लिए यह सचमुच खतरे वाली बात है .आप सभी जानते है उत्तर परदेश में चुनाव नज़दीक है ये भी जानते है मुस्लिम वोट बैंक कल तक इन्ही पार्टियों का था भाजपा से डराकर ये पार्टिया मुसलमानों के वोट अपनी झोली में डलवाती थी .लेकिन अब फिजा बदली है ……………………
मौलाना अब्दुल बदरूद्दीन को आप जानते है ?असम युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम से पार्टी चला रहे है जनाब ….। हाल में असम में जो विधान सभा चुनाव हुए हैं उन्ही चुनावो में इस पार्टी को 18 सीटें मिली है?जी हां 18 सीट….. पिछले चुनाव में एयूडीएफ को 9 सीटें मिली थी। मौलाना साहब ने घोषणा की है कि उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव सभी (चार सो तीन) सीटों से लड़ेगी। असम में मौलाना साहब की पार्टी की अपनी हैसियत है और वहां कि यह सबसे बड़ी दूसरी पार्टी है ?(क्या हिन्दुओ की जनसंख्या तेज़ी से घट रही है )। जहां तक उत्तर प्रदेश की बात है मौलाना साहब की पकड़ देवबंद और खासकर सहारनपुर के इलाकों में ठीक ठाक है और यह कहा जा रहा है है कि इस इलाके के दर्जन भर सीटों पर वे उलट फेर कर सकते हैं। मौलाना बदरूद्दीन कहते हैं कि ‘हम चुनाव तो सभी सीटों पर लड़ेंगे लेकिन हमारी नजर समान विचारधारा वाली पार्टी पर भी है। हम मिलते विचार वाले दल से समझौता भी कर सकते हैं( आप समझ रहे है न) ।’ जाहिर है मौलाना की पार्टी के चुनाव में उतरने से मुस्लिम वोट की राजनीति करने वाले दलों को परेशानी हो सकती है और खासकर सपा और बसपा को।चुकी इनकी सियासत की रोटी ही मुस्लिम वोटरों पर पकती है .पीस पार्टी आफ इंडिया, उलेमा कौंसिल और जमाते इस्लाम की नई पार्टी वेलफेयर पार्टी आफ इंडिया इस बार दम खम के साथ चुनावी पैंतरेबाजी की तैयारी में हैं। यह बात और है कि मुस्लिम आधारित ये पार्टियां अपने को सभी बर्गो को लेकर चलने वाली पार्टियां कह रही है लेकिन इन पार्टियों का जो आधार है वह सिर्फ मुस्लिम वोटों पर ही टिका है। इन हालातो को देखकर लगता है मुसलमानों में अपने पैरो पर खड़ा होने का साहस पैदा हुआ है अब वह उन पार्टियों से किनारा कर सकते है जिन पर तुष्टिकर्ण का आरोप लगता है .रही बात हिन्दू वोटरों की तो उसका तो हाल आपको पता ही है आधे वोट बसपा ले जएगी ,कुछ कांग्रेस कुछ बीजेपी और कुछ सपा .चलो छोडिये हिन्दुओ को उनका तो कोई वोट बैंक है ही नही .बहुमत में भी है पर सरकार में उनकी चलती नही आगे भी एसा ही रहने वाला है …..मै तो उन पार्टियों के बारे में सोच रहा हूँ जो
हिन्दू समुदाय के वोट लेकर मुस्लिम आबादी को किसी न किसी तरीके से बदहवा देते थे यदि उत्तर परदेश के चुनावों में इन मुस्लिम डालो को अच्छा खासा वोट मिला तब उनका क्या होगा .क्या उनमे हिन्दू तुष्टिकर्ण की सोच पैदा होगी यह एक बड़ा सवाल है जो गर्भ में है …….

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