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हमारी शिक्षा ,संस्कृति लुप्त होने के कारण

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सभी को मेरा नमस्कार ……….
मित्रो ,सभी देशभक्तों को एक बात खलती है की भारत में ही भारतीय शिक्षा नही है .हमारे बजुर्ग लोग इस बात से नाराज़ दीखते है की उनका कोई सम्मान हो न हो आज कल के लड़के अपनी बीवी का सम्मान जरूर करते है हमारी सेवा करे न करे परन्तु बीवी के लिए वानिला की आइसक्रीम जरूर लाते है .जिनके लड़के -लडकिया अभी पढ़ रहे है उनमे से कुछ एक ऐसे भी होते है जो इस समाज के खुलेपन ‘जिसमे आजकल का युवा अपनी गर्ल्फरैंड को सरे आम बाजार में घुमाता है फिल्म दिखाने ले जाता है…… इस बात से परेशान भी होते है .कुछ लोग इस बात से भी नाराज होते है की उनके बच्चे भारत की संस्कृति से कट रहे है वह बहुत ज्यादा पश्चमी सवभाव वाले होते जा रहे है . ऐसे लोगो की जनसंख्या ज्यादा तो नही है…… इनसे ज्यादा तो संख्या उन लोगो की है जो लोग समझोतावादी होते जा रहे है जिन्हें इन सब में दिक्कत तो है पर उनका तर्क ये है की ज़माने के साथ चलना पड़ता है .
मित्रो ,मै इस बात को सही नही मानता ……….मेरा मानना है हम ज़माने के साथ नही चल रहे है उलटे ज़माने से (यानी विदेशी ) शिक्षा से दब रहे है या फिर हम अपने स्वाभिमान से समझोता कर रहे है . अथवा हमने या हमारे बजुर्गो ने जो गलतिया की है उन्ही का परिणाम सह रहे है .(मेरा किसी भी भारतीय पर ऊँगली उठाने का इरादा नही है ) .मित्रो जब हमने देखा की पडोसी का लड़का या लड़की अंग्रजी में बात करता है तब हमने अपने बच्चो को भी अंग्रेजी सिखाई . जब हमने देखा की पडोसी के बच्चे जींस या फिर फ्राक पहनते है तो हमने भी अपने बच्चो को फिराक दिलाया .जैसे ही बच्चे बड़े हुए तो हमने “बच्चो को कान्वेंट या किसी अंग्रेजी मीडियम सकूल में डाल दिया . अब जैसे सकूल में हमने उन्हें डाला था वही सब वे सीखते गये व्ही खुलापन उनमे आता गया .और उनके आचरण में हमारी संस्कृति ,सभ्यता ,या बड़ो का सम्मान विलुप्त होते गये . अब हम खुद ही तो अपने बच्चो को (हालाकी मेरे बच्चे नही है मै एक २३ साल का युवा हूँ मेरी शादी अभी नहीं हुई है ) पडोसी के बच्चे के जैसा बनाना चाहते है हम खुद ही तो चाहते है की हमारा बच्चा अंग्रेजी बोले समाज के साथ चले तो हजूर चल तो रहा है वह समाज के साथ (ये बात अलग है की वह समाज के साथ चलने के चक्कर में समाज के रीती रिवाज़ भूल गया है .
मित्रो यही हमारे बजुर्गो और वर्तमान माँ बाप की गलती है जो हालत से समझोता कर रहा है जो बच्चे की हर खुवाहिश पूरा करना चाहता है भले ही उसे किसी भी गलत निति से समझोता करना पड़े .हमारे बजुर्ग ने भी यही गलती की विदेशी शिक्षा को बढ़ावा देकर और हम भी यही गलती कर रहे है मित्रो आजादी के बाद इस देश में मंदिर तो बहुत बने परन्तु उन मंदिरों में जाने वालो की भावना को बदलनी का खेल भी इस देश में चलता रहा वह चाहे नयेपन के नाम पर हो या फिर समाज के साथ आगे बढ़ने के नाम पर .न ही नए गुरुकुल का शुभारम्भ हुआ और न ही पुराने गुरुकुलो में माँ बाप ने अपने बच्चो को भेजा .न ही किसी समाज सेवी ने भारतीय शिक्षा पर खर्च किया और न ही हमारी सरकारों ने .

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