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अमेरिका में एक त्योहार होता है “थैंक्स गिविंग डे”, इस अवसर पर लगभग प्रत्येक अमेरिकी परिवार में टर्की (एक प्रकार का पक्षी) पकाया जाता है और उसकी पार्टी होती है। अब यदि मान लें कि 20 करोड़ अमेरिकी परिवारों में यह थैंक्स गिविंग डे मनाया जाता है और एक परिवार में यदि औसतन चार सदस्य हों तो कम से कम 5 करोड़ टर्कियों को इस दिन मारकर खाया जाता है… यदि किसी को पता हो कि न्यूयॉर्क टाइम्स ने कभी टर्कियों के इस बड़े पैमाने पर संहार के खिलाफ़ कुछ छापा हो तो अवश्य बताएं या लिंक दें। (चित्र — जॉर्ज बुश टर्की की गरदन दबोचने की फ़िराक में…)
इस तरह की बाते आपको मिडिया में देखने को नहीं मिलेगी चुकी यह साम्प्रदायिक खबर मान ली जायेगी ……. आपको तो हमारे मीडिया में ऐसी खबरे दिखाई जायेगी =दिवाली पर तांत्रिको की करतूत ,आसाराम बापू के लड़के ने तंत्र विद्या के लिए बली ली ,या फिर रूडिवादी सोच के तहत महिला को भूत निकालने के नाम पर चिमटा मारता बाबा .आये दिन आपको किसी न किसी टीवी चैनल पर हिन्दुओ के त्योहारों या संतो पर ऊँगली उठाने वाले बहुत मिलेंगे लेकिन मई जो दो खबरे प्रकाशित कर रहा हूँ उन पर मीडिया की बोलती सदेव बंद ही रहती है .यदि मीडिया शान्ति प्रिय हिन्दू संस्कृति को रुढ़िवादीकहता है, अंधविश्वास बताता है तो अमेरिका में जो होता है वह रुढ़िवादी या ,अंधविश्वास क्यों नही ?
ऐसा ही एक त्योहार है बकरीद, जिसमें “कुर्बानी”(किसकी?) के नाम पर निरीह बकरों को काटा जाता है। मान लें कि समूचे विश्व में 2 अरब मुसलमान रहते हैं, जिनमें से लगभग सभी बकरीद अवश्य मनाते होंगे। यदि औसतन एक परिवार में 10 सदस्य हों, और एक परिवार मात्र आधा बकरा खाता हो तब भी तकरीबन 100 करोड़ बकरों की बलि मात्र एक दिन में दी जाती है .ऐसे में उन गावो में हिन्दुओ का जीना दूभर हो जाता है जहा ऐसे काम ज्यादा होते है नालिया खून से भर जाती है सभी जगह बदबू होती है हिन्दुओ को कुछ दिनों के लिए अपने गाव को छोड़ कर रिश्तेदारों के यहाँ रुकना पड़ता है .लेकिन कोई मीडिया वाला इसे अंधविश्वास कहने की जुर्रत तक नही कर सकता चुकी इस देश में ऊँगली तो सिर्फ हिन्दुओ पर ही उठाई जा सकती है . मान लीजिये किसी हिन्दू मंदिर में बलि देने की बात सामने आये तो मीडिया क्या कर सकता है आप भी समझ सकते है (पूरी हिन्दू सभ्यता को विश्व सत्र पर बदनाम कर सकता है ).कई तरह के मानवधिकार कार्यकर्ता हिन्दुओ को बर्बर बता सकते है १५ दिन तक लगातार उस खबर को बार बार दिखाया जा सकता है .हिन्दू संस्कृति ,परम्परा को रुढ़िवादी बताया जा सकता है लेकिन उपर दोनों मामले में मीडिया नदारद रहता है इस बात से सवाल उठता है क्या वाकई मानवाधिकार कार्यकर्त्ता ,या हमारे मीडिया वाले धर्मनिरपेक्षता से खबरे दिखाते है .जो कलम हिन्दुओ के कर्मकाण्डो या फिर किसी भी वार त्योहार को अन्धविश्वास कहने से नहीं घबराती उस कलम के हाथ मुस्लिम या इसाई समाज की बुराइयों पर लिखते हुए क्यों कापते है .
1) सभी प्रकार की बलि अथवा पशु क्रूरता, अधर्म है, चाहे वह जिस भी धर्म में हो।
2) सिर्फ़ हिन्दुओं को “सिंगल-आउट” करके बदनाम करने की किसी भी कोशिश का विरोध होना चाहिये, विरोध करने वालों से कहा जाये कि पहले ज़रा दूसरे “धर्मों के कर्मों” को देख लो फ़िर हिन्दू धर्म की आलोचना करना…
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