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सभी को मेरी नमस्कार ……….
बहुत दिनों से सोच रहा हूँ किसी देशभक्त शहीद के लिए कोई पोस्ट लिखू लेकिन समय लिखने नही देता . आज मै एक शहीद की तरफ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ .नही ,नही ………..यह पोस्ट शहीद भगत सिंह ,या राजगुरु ,सुखदेव ,महात्मा गाँधी के लिए नही है .यह पोस्ट एक ऐसे शहीद के लिए है जिनका नाम तक हममे से बहुत से लोग जानते तक नही है . सुखदेव ,राजगुरु ,भगत सिंह ,महात्मा गाँधी से कोन परिचित नही है लेकिन बहुत से ऐसे शहीद भी है जिन्होंने हमारे देश के लिए कुर्बानी तो दी लेकिन उनका नाम लेवा भी आज नही है . कोंग्रेस वाले गांधी जी को याद कर लेते है और बीजेपी वाले कभी -कभार सावरकर जी को .लगता है शहीदों को भी बाट लिया गया है . चलिए आज इन लोगो से अलग चलते है एक आम आदमी की तरह …………….
इस सहीद का जन्म पंजाब के अमृतसर में हिन्दू परिवार में हुआ उनके पिता सिविल सर्जन थे और अंग्रेजी रंग में रंग गये थे किन्तु माता जी अत्न्य्त धार्मिक .उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र हुआ करता था और जब मदनलाल को भारतीय स्वतंत्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में लाहौर के एक कालेज से निकाल दिया गया तो परिवार ने मदनलाल से नाता तोड़ लिया। मदनलाल को एक क्लर्क के रूप में, एक तांगा-चालक के रूप में और एक कारखाने में श्रमिक के रूप में काम करना पड़ा। वहाँ उन्होने एक यूनियन (संघ) बनाने की कोशिश की किन्तु वहाँ से भी उन्हें निकाल दिया गया। कुछ दिन उन्होने मुम्बई में भी काम किया। अपनी बड़े भाई की सलाह पर वे सन् १९०६ में उच्च शिक्षा के लिये इंग्लैण्ड गये जहाँ युनिवर्सिटी कालेज लन्दन में यांत्रिक प्रौद्योगिकी (Mechanical Engineering) में प्रवेश लिया। वही उनकी मुलाकात महान देशभग्त वीर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा से हुई .दोनों देशभक्त मदनलाल की देशभक्ति की भावना से काफी प्रभावित हुए .सावरकर ने ही मदनलाल को अभिनव भारत मण्डल का सदस्य बनवाया और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया। मदनलाल, इण्डिया हाउस के भी सदस्य थे जो भारतीय विद्यार्थियों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केन्द्र था। ये लोग उस समय खुदीराम बोस, कन्नाई दत्त, सतिन्दर पाल और कांशी राम जैसे क्रान्तिकारियों को मृत्युदण्ड दिये जाने से बहुत क्रोधित थे। कई इतिहासकार मानते हैं कि इन्ही घटनाओं ने सावरकर और ढींगरा को सीधे बदला लेने के लिये विवश किया।०१ जुलाई सन् १९०९ की शाम को को इण्डियन नेशनल एसोशिएशन के वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिये भारी संख्या में भारतीय और अंग्रेज इकठे हुए। जब सर् कर्जन वायली (भारत मामलों के सेक्रेटरी आफ स्टेट के राजनीतिक सलाहकार) अपनी पत्नी के साथ हाल में घुसे, ढींगरा ने उनके चेहरे पर पाँच गोलियाँ दागी; इसमें से चार सही निशाने पर लगीं।
ढींगरा ने अपने पिस्तौल से अपनी हत्या करनी चाही किन्तु उन्हे पकड़ लिया गया।
न्यायालय में मदनलाल के कहे गये शब्द
मै अपने बचाव के पक्ष में कुछ नही कहना चाहता सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ अंग्रेजो की कोई भी न्याय वयवस्था मुझे सजा देने का हक़ नही रखती है .इसी वजह से मैंने कोई वकील मुकरर करना वाजिब नही समझा .जैसे जर्मनी के खिलाफ लड़ना अंग्रेजो की देशभक्ति है वैसे ही अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की लड़ाई हम भारतीयों की देशभक्ति है .मै अंग्रेजो को आठ करोड़ भारतीयों का हत्यारा मानता हूँ जिनको गत पचास वर्षो में बड़ी बेरहमी से मोत के घात उतरा गया है .अंग्रेज प्रति वर्ष दस करोड़ रुपया भारत से लाते है और भारत को चूस कर मोज उड़ाते है .अंग्रेजी हुकूमत ने मेरे देशवासियों को फ़ासी की सजा और आजीवन कारावास की सज़ा दी है .इंग्लैण्ड से एक अंगरे सो रुपया पोंड की नोकरी करने इसलिए भेजा जाता है ताकि वह एक हजार भारतीयों को निशाना बना सके ………सो में एक हजार भारतीय गुजर बसर करते है .अंग्रेजो की यह हवस साम्राज्य विस्तार के साथ -साथ भारतीयों के शोषण की दास्तान कहती है .जैसे जर्मनी को इंग्लैण्ड पर कब्ज़ा करके उसे गुलाम बनाने का अधिकार नही है वैसे ही अंग्रेजो को भारत को पराधीनता की बेडियो में रखने का कोई अधिकार नही है .
मुझे अंग्रेजो के उस न्याय और क़ानून पर हसी आती है जो पीड़ित मानवता की हमदर्दी पर घडियाली आँसू बहते है .जब जर्मन को -मारकर अंग्रेज अपने -आपको देशभक्त कहता है तो मै भी निश्चित तोर पर देशभक्त हूँ .मात्रभूमि का अपमान करने वालो का क़त्ल करना एक देशभक्त का पवित्र कर्तव्य है .मैंने वही किया है जो सच्चे देशभक्त को करना चाहिए .मुझे मृत्यु की जरा भी परवाह नही है .अंग्रेजो का काला क़ानून मुझे फ़ासी की सजा दे सकता है पर वह देशभक्ति की भावना को दफना नही सकता . मेरी फ़ासी के बाद अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की लड़ाई देश में और तेज होगी …………………………………….
मित्रो ,मेरी नाराजगी केवल नेताओं से ही नही है उनसे भी है जो देशभक्त होने के दावे करते है लेकिन मदनलाल धींगरा जी या सावरकर जी का नाम तक नही लेते .बेशक वह बाबा रामदेव ही क्यों न हो जो खुद को इस देश का सबसे बड़ा देशभक्त कहते है लेकिन कभी भी उस वीर के बारे में दो शब्द तक नही कहे जिसने अंग्रेजो से लन्दन में जाकर लोहा लिया था .अभी दो दिन पहले की ही बात है एक ब्लोग्गर ने लिखा था की महात्मा गाँधी को याद करते हो लेकिन शास्त्री जी और भगत सिंह जी को क्यों नही .लेकिन उन लोगो का नाम लेने वाला तो है कोई लेकिन मदन लाल धींगडा जी के साहस और देशभक्ति के बारे में तो कोई जनता तक नही है .जब की उनका बलिदान आजादी की लड़ाई में बहुत महत्वपूर्ण था और आज के युवाओं के लिए भी प्रेरणास्त्रोत हो सकते है .
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