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मित्रो ,जैसा सोचा था वैसा ही हुआ बेशक से यह चुनाव ‘ हजका -भाजपा ‘ गठबंधन जित गया हो लेकिन इसका श्रेय मिला अन्ना टीम को .सभी टीवी चैनल्स की रात से ही रणनीति बन गयी थी की इस चुनाव को अन्ना vs कोंग्रेस बना दिया जाए .रात को ही टीवी पर इस तरह से दिखाया गया की क्या अन्ना की जित होगी .सुबह हुई तो वही बात दोहराई गयी और सारा क्रेडिट मिला अन्ना को . जब की मै पहले ही साफ़ कर चुका हूँ की यह चुनाव जाट vs नॉन जाट का है .यदि इसी हिसार क्षेत्र से कोंग्रेस से जाट होता और इनेलो से नॉन जाट होते तो तस्वीर कुछ और ही होती . यहाँ अन्ना फेक्ट कुछेक वोटो का है न की यह जित अन्ना की वजह से है .
कोंग्रेस को वोट कम मिलने के कारण ……………
१ दो उम्मीदवारों का जाट होना
२ कोंग्रेस का लघभग पिछले सात साल से सत्ता पर होना
३ मिर्च्पूर काण्ड होना और उसमे जाटो के खिलाफ राजनैतिक दबाव में अधिक केस बनना
४ हजका -बीजेपी का एक होना (गठबंधन )
५ भजनलाल जी का निधन सहानुभूति के कुछ वोट
६ कुलदीप का अकेले नॉन जाट होना
७ भ्रष्टाचार
८ कुछेक बाबा रामदेव और अन्ना फेक्ट
मित्रो , ये सभी फेक्ट हजका -बीजेपी को जिताते है .पहला नुक्सान जो कोंग्रेस को हो रहा है वह दो उम्मीदवार जाट होना .यदि इस चुनाव में इनेलो की तरफ से कोई नॉन जाट होता तो जय प्रकाश की जित निश्चित थी चुकी इस समय दो जाट उम्मीदवार होने के कारण जाटो के वोट दो दलो में बट चुके है .दूसरा नुक्सान यह है की कोई भी पार्टी किसी भी परदेश में यदि दो बार चुन ली जाती है तो जनता में कुछ तो विरोधाभास होता ही है . कुछ तो बदलाव जनता भी करना जानती ही है . और जो तीसरा नुक्सान है वह है मिर्च्पूर काण्ड के बाद लघभग १०० जाटो पर केस दर्ज होना उन्हें तिहाड़ में कैद करना . लेकिन उनमे से बयासी लोग गाव आ चुके है कुछ ही दिन पहले . चोथा नुक्सान वो ये है की भारतीय जनता पार्टी बेशक हरियाणा में अच्छी स्थिति में कभी नही रही हो लेकिन जब इनका किसी से गठबंधन होता है तब बेडा पार हो ही जाता है चुकी ब्राह्मण ,बनिया ,पंजाबियों में कुछ हद्द तक तो यह पार्टी पैठ रखती ही है . पांचवा कारण है भजनलाल जी का निधन और उनके परती लोगो की सहानुभूति ‘ चुकी’ वह एक कद्दावर ही नही लोकप्रिय नेता भी थे . छठा जो कारण है वह सबसे मजबूत है की कुलदीप अकेले नॉन जाट उम्मीदवार थे और नॉन जाट उनमे अपना नेत्रित्व देख रहे है . सातवा नुक्सान है कोंग्रेस को लगातार भ्रष्टाचार जो हर आदमी का मुद्दा है लेकिन चुनावों में उसका नम्बर सातवा ही रहा . अब बात करते है अन्ना फेक्ट की जिनका नम्बर अंत में आता है जैसा की साफ़ है की अन्ना की टीम के आने से पहले ही इतने फेक्ट काम कर रहे थे तब अंत में आई अन्ना टीम लेकिन उसका कोंग्रेस की हार से सिर्फ इतना ही लेना देना है कुछ दो – एक प्रतिशत लोग जो की जातिवाद से उप्पर उठकर कोंग्रेस को वोट दे रहे थे वह भी अब कुलदीप -या चोटाला में बट गये .
इस पूरे खेल में अन्ना को मिडिया द्वारा एक बड़ा कोंग्रेसी विरोधी बनाया गया और जीत का सेहरा, श्रेय अन्ना को ही दिया . अब बेचारे कुलदीप भी कह रहे है की मेरी जीत तो पहले से ही निश्चित थी .लेकिन अब पछताए होत क्या ………. अब अन्ना जी ब्लॉग लिखा रहे है केजरीवाल भी कोंग्रेस पर चीख रहे है . ब्यान बाज़िया….. हो रही है आगे आगे देखते है क्या होता है प्रायोजित ढंग से ………कूल मिलाकर मै तो इसे मिडिया और अन्ना की सफल रणनीति का ही एक अंग मानता हूँ . लेकिन एक बात और है की अब बीजेपी जनता से क्या कहेगी …..की हम अन्ना की वजह से जीत सके चुकी जनता के जहन में तो मिडिया ने यही सब विचार डाल दिया है ………
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