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धर्मप्रचार के नाम पर धर्म परिवर्तन क्यों ?

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सालो से इसाई मिशनरी भारत में धर्मान्त्र्ण का खेल खेल रही है गरीब आदीवासी इलाको में जाकर स्कूल खोलना ,इलाज़ करना और फिर सहानुभूति दिखाकर धर्मपरिवर्तन . कभी रुपया पैसा देकर तो कभी हिन्दू संस्कृति का दुष्प्रचार कर ,कभी दलितों को हिन्दू धर्म में सम्मान नही मिल रहा, कभी देवी -देवताओं को स्वरण जाती का बताकर तो कभी राष्ट्रवाद को ब्राह्मणवाद बताकर , कभी दलितों पर अत्याचार जैसी मनगढ़ंत कहानिया बनाकर हिन्दुओ को कमजोर करने की साज़िशे रचती रही है और विचारधारा में परिवर्तन करती रही है ,हिन्दुओ को इसाई बनाकर हिन्दुओ के खिलाफ दंगो में इस्तेमाल करती रही है . इतिहास गवाह है जहा -जहा धर्मपरिवर्तन द्वारा मत परिवर्तन हुआ है वहा -वहा अलगावाद ,भारत विरोधी सुर पनपे है,उन जगहों पर दंगे फसाद हुए है .इनका उदाहरन शायद काश्मीर ,केरला ,कर्नाटका ,ओड़िसा हो सकते है .बेशक हर इंसान अपनी इच्छा अनुसार किसी भी धर्म को मान सकता है लेकिन इस्लाम और इसाई समाज की साम्राज्यवाद ,विस्तारवाद की नीतियों के कारण भारत जैसा शान्ति प्रिय देश आज गरहयुद्ध जैसी आशंकाओं से जूझ रहा है .बेशक कोई भी इंसान किसी भी भगवान ,अल्ला ,गोड में विशवास रख सकता है लेकिन क्या ये तभी संभव है जब वह कृष्ण ,से मोहम्मद युसूफ और राम से थोमस न बन जाए .आखिर कोई राम रहते हुए भगवान कृष्ण और अल्ला को गोड को भी मान सकता है . लेकिन क्यों उसे राम से मोहम्मद युसूफ बनाया जाता है और कृष्ण से थोमस .आखिर क्यों एक हिन्दू को थोड़ी सी मदद देकर उसे थोमस या फिर मोहम्मद युसूफ बनाने की कोशिश की जाती है . सदियों से हिन्दू समाज सर्व्ध्रम का सम्मान करता आया है एक हिन्दू का सर उस समय झुक ही जाता है जब कोई धर्मस्थान आता है फिर वह चाहे मस्जिद ,चर्च ,गुरुद्वारा या मंदिर हो . आज भी भारत में हजारो ऐसे गाव है जहा मुस्लिम समाज की जनसँख्या १ प्रतिशत से भी कम है लेकिन हिन्दू समाज ने वहा मोजूद मस्जिदों को न ही तोड़ने की कोशिश की है और न ही बेवजह किसी भी मुस्लिम को तंग किया है . आज भी भारत के कई शहरो में इसाई समाज की जनसंख्या नाम बराबर है लेकिन इसाई समाज पर हिन्दू समाज ने कभी हिन्दू बनने या हिन्दू धर्म को मानने के लिए दबाव नही डाला है . फिर क्यों हिन्दुओ पर ही निशाना साधा जाता है पहले तो उन्हें हिन्दू से मुस्लिम या इसाई बना दिया जाता है और बाद में अपने ही लोगो से लड़ा दिया जाता है उन्हें अपना जन्मस्थान छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है उन्हें अपने ही देश में एक शरणार्थी का जीवन जीने के लिए मजबूर किया जाता है . धर्म प्रचार के नाम पर यह ,विचार परिवर्तन , मतपरिवर्तन ,धर्मपरिवर्तन जायज है ? जहा एक बहुसंख्यक समाज खुद की संस्कृति को बचाने -निभाने के लिए खुद के धर्म को मानने के लिए आजाद न रह जाए .क्या धर्मप्रचार के नाम पर किसी को उसी की धरती से भगाना जायज है . क्या भारत के भी ठीक उसी प्रकार टुकड़े करने की साजिश रची जा रही है जैसे रूस में रची गयी ,क्या आज भी वही खेल भारत के साथ खेला जा रहा है जो ओरंगजेब ,गजनी जैसो ने खेला था .

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