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मित्रो दीपावली की शुभकामनाये ,
दीपावली नज़दीक है खुशियों का पवित्र त्यौहार है दीपावली .कुछ लोग इस दिन हजारो के पटाखे लाते है ,बजाते है ,बम्ब बजाते है ,राकेट छोड़ते है ,फिरकी घुमाते है . पहले मै भी ये सब करता था पटाखे बजाता अच्छे खासे पैसे खर्च करता . लेकिन अब मै समझता हूँ की दिवाली का मतलब पटाखे बजाना ही नही है यह एक एसा त्यौहार है जो अँधेरे में रौशनी करता है .मैंने कई बार देखा है की मेरे कुछ पडोसी लगभग तीन -तीन हजार के पटाखे लाते है बजाते है . लेकिन कुछ पड़ोसियों के बच्चे उन पटाखों को छुना चाहते है लेकिन वह उन्हें छुना तो दूर की बात सूंघने भी नही देते . वे बच्चे मन मुरझा कर रह जाते है ……….
मुझे लगता है पहले तो ज्यादा पटाखे बजाना ही गलत है ज्यादा बजाने से, एक पटाखा हाथ ,कपडे कुछ भी जला सकता है .हाथ जला कुछ थोड़ी सी चोट लगी ख़ुशी कहा रही .इससे तो बेहतर है उन लोगो को जो ज्यादा पटाखे लाते है उन्हें यह करना चाहिए ……….उन घरो में दिया जलाए जहा दिए के लिए तेल नही ,बाती नही .उन लोगो के घरो को रोशन करे जिन घरो में दिवाली के दिन भी रौशनी ही नही चुकी उनकी आर्थिक हालात खस्ता है . उन चेहरों पर मुस्कान लाने की कोशिश करे जो दिवाली के दिन भी मुरझाये रहते है . मैंने कई लोगो को देखा है की उनके घर दिवाली के दिन बीस -बीस मिठाई के डब्बे कट्ठे हो जाते है जाहिर है एसे लोग समृद्ध होते है ,सम्पन्न होते है या तो वे डब्बे उन्हें फेकने पड़ते है या फिर वह मिठाई खराब हो जाती है . लेकिन उन्ही के पड़ोस में एक गरीब परिवार होता है जो शायद एक पाँव जलेबी में ही दिवाली मना लेता है . यहाँ दो बाते निकलती है ज्यादातर समाज में देखने को मिलता है की अमीर लोग -अमीरों को ही मिठाई बाटते है जब की उन्हें मिठाई का लोभ ही नही होता चुकी भगवान का दिया उनके पास सभी कुछ होता है . मै समझता हूँ जो आमिर लोग या फिर मध्यम वर्गीय परिवार होते है उन्हें अपने बाजू वाले घर में एक मिठाई का डब्बा देना चाहिए . अब उस डब्बे को जब दे तो मरे बुझे मन से नही और न ही किसी किस्म का कोई रोब झाड़कर .बल्कि एक सम्मान के तोर पर भाईचारे से प्यार से जिससे उन्हें एसा अहसास न हो की उन पर तरस खाकर उन्हें कोई भीख दी जा रही है .यदि आप एसा करेंगे तो सचमुच खुशिया ज्यादा होंगी और जो समाज में असमानता का डोर चल रहा है उंच – नीच कुछ हद्द तक तो कम होगी ही .
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