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तसलीमा नसरीन ने एसा क्या गलत कहा

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मित्रो क्या वाकई भारत धर्मनिरपेक्ष देश है ,क्या वाकई भारत में अभिव्यक्ति की आजादी गिलानी ,अरुंधती ,प्रशांत भूषण की तरह ही बाकी लोगो को भी है . क्या वाकई सर्व धर्म की बाते करने वाले लोग हिन्दुओ पर बढ़ते अत्याचारों पर भी उतने ही गंभीर होते है जितने की मुस्लिम या इसाई समाज पर . जिस तरह से आज हिन्दू धर्म को बदनाम कर उस पर ऊँगली उठाकर ,उसे रूढ़िवादी बताने की कोशिश मीडिया ने अपनी टीआरपी बढाने के लिए की है और कर रहा है क्या वह और धर्मो में जो गलतिया है उसे भी गलत बता सकता है . इन सभी का जवाब आपको नही मिलेगा .
ताज़ा मामला भी कुछ एसा ही है जिसमे एक मुस्लिम महिला तसलीमा नसरीन ने बकरीद के त्यौहार पर कुछ tweet किया है तसलीमा पर ताजा हमला बकरीद से पूर्व पशु हत्या को नाजायज कहे जाने से सम्बंधित ट्वीट की वजह से हुआ है, जिसमे तस्लीमा ने किसी भी धर्म में पशु हत्या को नाजायज ठहराते हुए कहा था कि वो इश्वर महान कैसे हो सकता है जो निर्दोष प्राणियों की हत्या से खुश होता हो?

तस्लीमा के इस बयान को दैनिक भास्कर के हिंदी और अंग्रेजी संस्करणों ने जानबूझ कर इस तरह से प्रस्तुत किया मानो वो इस्लाम के खिलाफ बोल रही हों नतीजा ये हुआ कि पंजाब के शाही इमाम हबीब -उर -रहमान ने जुमे की नमाज के बाद तसलीमा को इस्लाम से निष्काषित किये जाने का फतवा सुना दिया। शाही इमाम का कहना था कि तसलीमा का दिमाग खराब हो गया है इसलिए वो अपने ही धर्म के खिलाफ बोल रही हैं, उन्होंने ये भी कहा कि “तसलीमा मानवता पर काले धब्बे की तरह हैं इसलिए उन्हें और इस्लाम और ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकता”। गौरतलब है कि दुर्गा पूजा और उसके बाद बकरीद के दौरान पूरे देश में लाखों पशुओं की आस्था के नाम पर बलि चढ़ा दी जाती है। तसलीमा इस पूरे मामले पर एक बातचीत में कहती हैं “भास्कर ने मेरे बयान को इमानदारी से प्रस्तुत नहीं किया, शायद वो मेरे खिलाफ फतवे की पेक्षा कर रहे थे और उन्होंने अंततः वो कर डाला। अपने ताजा बयान के सम्बन्ध में वो कहती हैं “मै दर्द रहित मृत्यु की कामना करती हूँ ,पशुओं को भी इसका अधिकार होना चाहिए”
मित्रो आपको नही लगता की मुस्लिम समाज कही न कही बदलना चाहता है लेकिन कत्त्र्पन्थियो के फतवे उन्हें रोक देते है . हमेशा खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाला मीडिया और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए लड़ने वाला मीडिया,समाज से अंधविश्वास मिटाने वाला मिडिया ,कर्वचोथ को महिलाओं पर अत्याचार बताने वाला मिडिया मुसलमानो को जागरूक करने के लिए कोई कदम क्यों नही उठाता .मित्रो एसा ही किसी हिन्दू महिला ने हिन्दू त्योहार पर कुछ कहा होता और कोई हिन्दू साधू या पंचायत उसे जाती या हिन्दू धर्म से बहर निकलने का आदेश देते तो यही मीडिया और बुद्धिजीवी भारत में स्यापा पा देते और चिल्ला -चिल्ला कर हिन्दू युवाओं में और पूरे देश में सन्देश देते की यह अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोटा जा रहा है लेकिन तसलीमा के मामले में इन्ही लोगो ने कोई बहस तक करना उचित नही समझा ?

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