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क्या ब्राह्मण अपना धर्म भूल गये है ?

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इस लेख को लिखते समय मै किसी जाती विशेष पर टिप्पणी नही कर रहा हूँ और न ही किसी जाती के खिलाफ कूछ लिख रहा हूँ चुकी मै ब्राह्मण को किसी एक जाती का नही मानता मेरा मानना है की ब्राह्मण वह है जो कर्म से ब्राह्मण है वही ब्राह्मण है न की जन्मजात से कोई भी ब्राह्मण या फिर किसी भी वर्ग का हो सकता है .
लेख आरम्भ
आज सनातम संस्कृति का पतन हो रहा है पाश्चात्य संस्कृति हमारे देश में बढ़ रही है तेज़ी से इस्लाम ,ईसाइयत फ़ैल रही है हिन्दुओ के संस्कार शिक्षा ख़त्म हो रहे है . बड़े ,छोटे का सम्मान ,इज्जत सभी कूछ भारतीय आर्य पुत्र तेज़ी से भूल ही नही रहे बल्कि उसका उपहास उड़ाने में लगे है . जिस तेज़ी से मैकाले की शिक्षा का परचार ,प्रसार हो रहा है जिस तेज़ी से अंग्रेजी संस्कृति हम पर हावी हो रही है उसका एक सपष्ट कारण सरकारों का भारतीय संस्कृति में विशवास न रखना हो सकता है माँ बाप का अपने बच्चे को सकर्ट ,कोट पेंट में बड़ा बाबू बनता देखना हो सकता है . लेकिन मै इसका एक बड़ा कारण हमारे देश के सबसे सम्मानित वर्ग ब्राह्मण को मानता हूँ athvaa किसी भी मंदिर के पुजारी को मानता हूँ . चुकी ब्राह्मण या पुजारी का कार्य केवल मंदिर की देखभाल कर पैसा कमाना भर रह गया है . हवन करवाकर पैसा कमाना , कर्म काण्ड करवाकर पैसा कमाना , जागरण या सत्संग करवाकर पैसा कमाना . मुझे लगता है ब्राह्मण अपना धर्म भूल गये है भारतीयों में तेज़ी से भारतीय शिक्षा संस्कारों का पतन मुझे लगता है ब्राह्मण धर्म भूलने की वजह एक बड़ी वजह है . चुकी एक ब्राह्मण का काम सनातम शिक्षा के ज्ञान को फैलाना , भारतीय संस्कृति को बढ़ाना है , हिन्दुओ को अधिक से अधिक गीता का ज्ञान देना , वेद शास्त्रों का सार समझाना है , गौ का महत्व बतलाना है . लेकिन आज ब्राह्मण वर्ग किस और जा रहा है जिस ब्राह्मण वर्ग का कार्य भारतीय शिक्षा ,चिकित्सा को बढ़ाना रहा है , कमजोर प्राणियों में नई चेतना फूकने का रहा है , करूर राजाओं को चेताने का रहा है वह आज क्यों केवल पैसो /strong> को ही सवोपरी मान रहा है . मै एसा इसलिए कह रहा हूँ अथवा लिख रहा हूँ की समय -समय पर ब्राह्मणों ने ही इस देश को क्स्रुर राजाओ की सत्ता से मुक्ति दिलाई है इसका सबसे बड़ा उदाहरन चाणक्य है वर्तमान में भी बाबा रामदेव जी जो की जन्म से ब्राह्मण नही परन्तु कर्म से सो फीसदी ब्राह्मण है और इस देश का स्वाभिमान जगाने में लगे है. लेकिन एसे भी हजारो ब्राह्मण पुजारी है जो देश की फ़िक्र नही कर रहे और समाजिक बन्धनों में ,आधुनिकता में असक्त हो चुके है स्वार्थी हो चुके है . ब्राह्मण ही इस देश को ज्ञान दे सकते है फिर से सनातम संस्कृति को विश्व में फैला सकते है ,फिर से सनातम धर्म की रक्षा के लिए आगे आ सकते है लेकिन लगता है उनकी दिलचस्पी मात्र पैसा कमाने में है न की भारतीय संस्कृति की जड़ो को मजबूत करने की . अतः मेरा निवेदन है जो भी खुद को ब्राह्मण मानता है कर्म से या जन्म से वह अपना धर्म निभाये और कम से कम अपने गाव के शहर के १० लोगो में आर्यपुत्र होने का इस भारतभूमि का पुत्र होने का स्वाभिमान जगाये यही मात्र भूमि की सच्ची सेवा होगी और सच्चा ब्राह्मण धर्म भी .

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