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कट्टरपंथियों से निपटने असक्षम है हमारी सरकार ?

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क्या भारत तेज़ी से तालिबान संस्कृति में बदल रहा है पहले तसलीमा नसरीन फिर सलमान रुश्दी साहब फिर तसलीमा नसरीन आखिर ये हो क्या रहा है भारत में . पहले तसलीमा नसरीन के एक लेख को लेकर बवाल मचा फिर सलमान रुश्दी के भारत दोरे को लेकर और दोनों ही बार कुछ कट्टरपंथी के दबाव में आ गयी हमारी सरकारे . कभी the स्टेनिक वर्सेज पर बैन तो कभी तसलीमा नसरीन के किसी लेख पर फतवा या उनके किसी राज्य में रहने पर प्रतिबन्ध . आखिर कहा जा रहा है हमारा देश ? जिसमे किसी को बोलने की लिखने की आजादी नही है जो धर्मनिरपेक्षता का झूठा लोआबा ओढ़े है जिसमे लोग अपनी भावनाओ को व्यक्त करते है तो धमकिया मिलती है .अभी दो दिन पहले ही एक ब्लॉग में पढ़ा की कट्टरपन्थियो ने मंदिर में घंटी न बजाने को लेकर दबाव बनाया है उनका कहना है की मंदिर में घंटी बजाने से दंगा भडक सकता है . आखिर मंदिर की घंटी किसी की भावनाओं को इतना आहत कैसे कर सकती है की बात दंगे तक आ पहुचे . आखिर हमारी सरकार दबाव में क्यों है की कभी वह किसी लेखक के भारत दोरे पर रोक लगाती है तो कभी किसी पुस्तक पर तो कभी कुछ मुट्ठीभर कट्टरपंथियों के दबाव में किसी की धार्मिक भावनाओं का गला घोटती है . आखिर क्यों नही कट्टरपंथियों की हर उस आवाज को दबाया जाता जो असंवैधानिक है क्या इसकी वजह तेज़ी से होता भारत का इस्लामीकरण है . या फिर हम वाकई तुष्टिकरं की नीतियों के चलते इन हालत में पहुच गये है की हमारी सेना सुरक्षा व्यवस्था कट्टरपंथियों से निपटने में असक्षम हो चुकी है ? क्या वाकई भारत सरकार को लगता है की कट्टरपंथियों पर किसी भी कारवाई से दंगे भडक सकते है और हालात असमान्य हो सकते है ? क्या भारत सरकार को हमारी सेना पुलिस पर भरोसा नही है की वह किसी भी आपात स्थिति से निपटने में सक्षम है ? या फिर सत्ता में बने रहने और सत्ता में वापसी के रास्ते बनाये जा रहे है भारतीय कानूनों का मजाक बनाकर उन्हें ताक पर रखकर ? जिसके चलते अस्न्वाधानिक धार्मिक आरक्षण , अभिव्यक्ति की सवंत्रता का गला घोटू परम्परा ,लडकियों के मोबाइल रखने पर फतवा , किसी की धार्मिक सवतंत्रता पर रोक जैसी स्थिति देश पर थोपी जा रही है .

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