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आपने बचपन से आज तक नजाने कितनी बार सूना होगा की हिन्दू मुस्लिम भाई -भाई किताबो में ,इश्तिहारो ,अखबारों ,बैनरों में देखा होगा . लेकिन क्या वाकई हिन्दू मुस्लिम है भाई -भाई . बटवारे के बाद से नेताओं और पुस्तको और संतो ने हमें पाठ पढ़ाया है की हिन्दू मुस्लिम भाई – भाई है .लेकिन मेरा मानना एसा नही है आजादी के बाद या फिर पहले जितने भी दंगे फसाद हुए है है वह हिन्दू -मुस्लिम के बीच सबसे ज्यादा हुए है .बेशक से हिन्दू और मुसलमान का खून एक जैसा है ,बेशक से दोनों के ही शरीर में एक आत्मा है ,बेशक से सबका मालिक एक है लेकिन फिर भी दोनों की ही संस्कृतिया अलग -अलग है ,भाषा अलग है रहन सहन अलग है ,शिक्षा अलग है ,जीवन शैली अलग है ,संस्कार अलग है . एसा मात्र किताबो में ही शोभा देता है की हिन्दू -मुस्लिम भाई -भाई लेकिन असल जिन्दगी में स्थिति बिलकुल इसके उल्ट है . एक समुदाय सर्व धर्म की बात करता है मंदिर , मस्जिद गुरुद्वारों ,गिरिजाघरो ,नदियों ,पत्तो , पक्षियों , कीड़े मकोडो में इश्वर का रूप देखता है और वही दुसरा समुदाय एकेश्वरवाद के सिधान्तो पर चलता है और उसे मानता है और बाकियों मूर्तिपूजको को काफिर मानता है . सच मानिए तो दोनों की ही शिक्षा -सभ्यता अलग अलग है विचार अलग है .एक समुदाय विकास के लिए देश की उन्नति के लिए प्रयत्नशील है वाही दुसरा समुदाय जनसंख्या परिवर्तन के लिए प्रयासरत है , मत परिवर्तन ,धर्मपरिवर्तन ,सत्ता परिवर्तन के लिए प्रयासरत है . एक समुदाय विदेशी हमलो , इस्लामिक षड्यंत्रों ,हमलो के बावजूद भी सहनशील है दुसरा समुदाय देश को दारुल इस्लाम बनाने पर प्रयासरत है . क्या इन सभी हालातो को देखकर लगता है की कभी हिन्दू -मुस्लिम भाई -भाई हो सकते है ? जरा सोचिये
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