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आडवाणी और मोदी दोनों है भाजपा को जरुरी

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आजकल चहु और से आडवाणी भाजपा छोड़ो के नारे बुलंद हो रहे है सभी को लगता है की यदि आडवाणी पीएम का मोह त्याग दे तो भाजपा फिर से केंद्र में सरकार बना सकती है इस बात में कितनी सच्चाई है क्या कभी किसी ने इस बात पर भी ध्यान दिया है . क्या वाकई आडवानी जी के भाजपा छोड़ते ही या राजनीती से संन्यास लेते ही भाजपा सरकार बना सकेगी केंद्र में . मेरा तो मानना है यदि आडवानी है तो भाजपा है यदि आडवानी नही तो भाजपा का कोई अस्तित्व ही नही . इसके कई कारण है पहला कारण भाजपा में अब तक न तो कोई एसा नेता है जो भारत वर्ष में लोकप्रिय हो , भारत में जाना जाता हो , और सर्वमान्य हो ,जिसने राजनीति की जमीन की उबड खाबड़ को देखा महसूस किया हो ,जनता से सीधे संवाद करने वाला सीधे जनता के बीच सडको पर मुद्दे उठाने वाला हो और दुसरा जो सबसे मजबूत कारण है वह यह की भाजपा को एक ऐसे चहरे की जरूरत हमेशा रहेगी जो सभी दलों को साथ लेकर चल सके ,जो धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को जोड़ सके इसमें भी आडवाणी जी ही खरे उतरते है . भाजपा और आर एस एस के बहुत से लोग मोदी को पीएम पद का दावेदार मानते है और उन्हें इस पद पर देखना चाहते है चुकी उन्हें मोदी में ही हिंदुत्व का भावी नेता दिखाई देता है . लेकिन मोदी की दावेदारी पर प्रश्नचिन्ह तब लग जाता है जब देश के आज के हालात देखे जाते है तमाम धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी , मीडिया , सेकुलर ,नेताओं की कलम जब मोदी पर कटाक्ष करते नजर आते है और यही कार्य वह लगभग पिछले ९ सालो से कर रहे है और भारत के हर नागरिक को धर्मनिरपेक्षता के नाम पर बेवकूफ बना रहे है और मोदी को जनता के बीच एक साम्प्रदायिक चहरा पेश कर रहे है एसा ही कुछ आडवाणी के साथ भी होता रहा है राम जन्म भूमि आन्दोलन को लेकर जैसे आडवाणी को जनता की नजरो में एक विलेन बना दिया गया था और बाबरी को शहीद वैसे ही मोदी को भी मोत का सोदागर बनाने की भरपूर कोशिश हो रही है धर्मनिरपेक्ष तत्वों द्वारा . लेकिन फिर भी जब बात गठबन्ध सरकार की आती है तो अन्य दल मोदी के बजाय आडवाणी को कुर्सी पर बैठाना उचित समझते है इसका एक सीधा सा कारण है आडवाणी की धर्मनिरपेक्षता में बदलती छवि जो की बाकी दलों को जनता खासकर मुसलमानों के सामने यह दिखाने का मोका देती है की देखो हमने साम्प्रदायिक मोदी को देश का पर्धन्मन्त्री नही बनने दिया और मुसलमानों का साथी हमदर्द दिखाने का अवसर प्रदान करती है . कुछ लोगो को यह भी वहम हो गया है की यदि मोदी को पीएम का दावेदार घोषित कर दिया जाये तो भाजपा अकेले दम पर सत्ता में लोटेगी लेकिन मेरा उन लोगो से सीधा सवाल है क्या भाजपा का इतना जनाधार है वह अकेले दम पर केंद्र में आये ? देश के कई ऐसे राज्य है जहा भाजपा ने कभी भी अकेले दम पर या सहयोग से सत्ता सुख नही चखा है जैसे आन्ध्र , केरला , हरयाणा , पंजाब , असम , महाराष्ट्रा , मणिपुर , जम्मू -काश्मीर ये ऐसे राज्य है जहा भाजपा के पास एक विकल्प बनने और हिन्दुत्त्व को हवा देने के मोके रहे है लेकिन यहाँ भी भाजपा कुछ ख़ास नही कर सकी है और बार बार उसे सत्ता के लिए इनमे से कुछ राज्यों में बैसाखिया तलाशनी पड़ती है .इसके उल्ट देश में ऐसे राज्य अधिक है जहा कोंग्रेस ने विकास को मुद्दा बनाया है या फिर कोंग्रेस के नेता अपनी -अपनी जातियों में पैठ रखते है इन्ही के सहारे कोंग्रेस उन राज्यों में राज कर रही है लेकिन भाजपा के नेताओं को उन राज्यों में जाना भी नही जाता और न ही विकास को भाजपा मुद्दा बना सकी है और न ही किसी भी नेता को उसकी जाती का लोकप्रिय नेता बना सकी है न ही किसानो का हमदर्द स्थापित कर सकी है और न ही व्यापारियों का .इसी स्थिति को देखकर भाजपा की मजबूरी है गठबंधन या कही आडवानी भी चुकी इन क्षेत्रो में क्षेत्रीय दल भाजपा से कही अधिक मजबूत दिखाई पड़ते है कूल मिलाकर मोदी और आडवाणी भाजपा के लिए दोनों ही जरुरी है ज़हा मोदी को हिन्दू वोट बैंक खीचने के लिए प्रचारित किया जा सकता है चुकी आज हिन्दू वोट बैंक मोदी को आडवानी की जगह अधिक विश्वसनीय समझता है वही आडवाणी को उस संकट की घड़ी में लाया जा सकता है जब सहयोगियों के सहारे सरकार बनाने की गुंजाईश बचे .

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