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आज मन बड़ा ही दुखी है है बात भी कुछ ऐसी है रास्ते से आ रहा था चोक पर एक मूर्ति बनी है नेता की , मूर्ति पर फुल -मालाए चढ़ी है , धोकर -सुखाकर ,धुप बत्ती यहाँ तक की प्रसाद बूंदी का भोग लगाया जा रहा है . मन बड़ा ही दुखी हुआ ,विचलित हुआ चुकी बात ऐसी नही की नेता की जगह वहा भगवान की मूर्ति क्यों नही बल्कि इसलिए की एक एसा नेता की पूजा की जा रही है जिसकी जिन्दगी विवादों ,आरोपों से भरी रही भेद -भाव से भरी रही और एक ऐसे इंसान की पूजा की जा रही है . शायद इसलिए की जो पूजा कर रहे थे उन्हें नोकरी दिलाने में नेता ने मदद की होगी , शायद इसलिए की नेता ने कोई और छुट दी होगी फिर भी मन में एक ठीस है किस तरह के नेताओं की मूर्तियों को चोक पर लगाया जा रहा है कैसे नेताओं को आदर्श नेता स्थापित किया जा रहा है ? क्या इन नेताओं की जगह सरदार पटेल ,भगत सिंह , वीर सावरकर ,नेता जी सुभाष , शिवा जी , गुरु गोबिंद सिंग की मुर्तिया नही लग सकती ? यह ठीक है की इन शहीदों की मुर्तिया भी भारत की गरीबी नही मिटा सकती रोजगार नही दे सकती लेकिन इन म्हापूरूशो ,शहीदों की मूर्तियों का चोक पर लगना उन नेताओं से कही बेहतर है जिनके ऊपर तरह -तरह के आरोप है चुकी शहीद की मूर्ति और उस मूर्ति पर उसका जीवन परिचय इतिहास अंकित होता है जो कई मायनों में अहम है पहला तो यह भारत के इतिहास की छाप हर युवा के मन मस्तिष्क पर छोड़ता है दुसरा इन्ही शहीदों की जीवन शैली जीने के लिए युवाओं को प्रेरित भी करता है और देश के लिए बलिदान देने की प्रेरणा राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाता है . जब की किसी एसे नेता की मूर्ति जिसने समाज में रहकर अत्याचार किये हो बलात्कार तक के आरोप उस पर हो उसकी मूर्ति को चोक पर लगाना और चापलूस कार्यकर्ताओं द्वारा धुप फेरना प्रसाद भोग लगाना किस मानसिकता को दर्शाता है और किसी भी इंसान को कैसा जीवन जीने की प्रेरणा देता है यह बात समझ से परे है .
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