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तेज़ी से होता धर्मान्त्र्ण इस बात का संकेत है की भारत में इस्लाम तेज़ी से अपने पाँव फैला रहा है नेताओं की तुष्टिकरं की नीतिया और हिन्दुओ की अत्याधिक सहनशीलता दोनों ही इसके जिम्मेदार है तेज़ी से बढ़ रही इस्लामिक आबादी देश की धर्मनिरपेक्षता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है . वह धर्मनिरपेक्षता जो बहुसंख्यक हिन्दू होते हुए भी मुसलमानों ,इसाइयों , सीखो , बोधो , जैनियों हिन्दुओ सभी को अपनी संस्कृति में जीने की छुट देती है जो गुरुद्वारों ,मस्जिदों ,चर्चो , मंदिरों की सुरक्षा की गारंटी है वह धर्मनिरपेक्षता जिसमे एक सिख अपने केश बढ़ाने के लिए आजाद है और गुरूद्वारे में मत्था टेकने के लिए भी , इसाई चर्च में जाने और गले में ईसामसीह का लोकेट पहनने के लिए आजाद है ,और मुस्लिम ईद -बकरीद सभी त्यौहार मनाने के लिए आजाद है . लेकिन बढती मुस्लिम आबादी यह सोचने पर मजबूर करती है की यदि भारत एक मुस्लिम बहुल देश बन जाए जिसके लिए इस्लामिक कट्टरपंथी प्रयासरत है तो क्या भारत में धर्मनिरपेक्षता कायम रह सकेगी क्या इसी तरह से सभी भारतीय नागरिक धार्मिक सवतन्त्रता में जी सकेंगे . क्या इसी तरह से बाकी धर्म भी फल -फुल सकेंगे जो हिन्दुतत्व की छत्रछाया में फल – फुल रहे है और आजाद है ? कम से कम इतिहास तो इस बात की गारंटी नही देता चुकी धार्मिक आधार पर बने पाकिस्तान में जो आबादी हिन्दुओ की बीस पर्तिशत थी वह घटकर दो पर्तिशत पर पहुच गयी है वही काश्मीर का भी वर्तमान हाल हमारे सामने है ज़हा हिन्दुओ के साथ भेद -भाव के मामले सामने आते रहते है वही अभी कुछ दिन पहले ही एक घटना हैदराबाद की भी सामने आई जहा मंदिर की घंटी बजाने को लेकर बवाल हुआ समय -समय पर मुस्लिम बहुल इलाको से दंगो की खाबे भी आती रहती है जिसे धर्मनिरपेक्ष मीडिया दबा देता है . इसलिए आज यह सवाल हम भारतीयों के सामने मुह बाए खड़ा है क्या मुस्लिम बहुल भारत धर्मनिरपेक्ष होगा ? यह उन सेकूलर लोगो को भी समझना होगा जो लोग सेकूलरिज्म की परिभाषा का गठन दोगले तरीके से करते है और हमेशा हिंदुत्व पर ऊँगली उठाना उनका प्रमुख कार्य है .
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