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राष्ट्रीय ममता |

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पिछले कुछ माह से ममता बनर्जी सरकार के लिए सर दर्द बनी हुई है सही मानिए तो विपक्ष की दमदार भूमिका विपक्ष की जगह ममता निभा रही है . ममता बरजी के तेल के बढे हुए दामो पर आक्रमक तेवर फिर ऍफ़ डी आई पर फिर एन सी टी सी पर और अब रेल बजट पर बार – बार केंद्र सरकार को झुकाने अपने फैसले वापस लेने पर मजबूर कर रहे है . सही मानिए तो जो क्रेडिट विपक्ष को मिलना चाहिए वह क्रेडिट ममता के खाते में जा रहा है ममता बनर्जी एक तरफ तो केंद्र के साथ गठबंधन में है वाही दूसरी तरफ वह अपने ही सहयोगी दल यानी कांग्रेस का समय -समय पर विरोध कर रही है इस बार तो उन्होंने हद्द ही कर दि अपनी ही पार्टी के नेता का विरोध कर और इस्तीफे का दबाव बनवा कर . साफ़ है एसा करके उन्होंने न सिर्फ लेफ्ट के हाथ से मुद्दा खीच लिया है बल्कि बंगाल की जनता की नजरो में भी खुद को हीरो साबित किया है लेकिन इस पूरे प्रकरण को गोर से समझा जाए तो यह पूरा खेल ही बनावटी लगता है चुकी जो त्रिवेदी साहब ममता के इशारे पर रेल मंत्री बनते है क्या वही त्रिवेदी साहब ममता को नाराज करना चाहेंगे ? क्या वही त्रिवेदी साहब ममता की इच्छाओं के विपरीत बजट पेश करेंगे ? यह पूरा मामला पहले से ही तैयार लगता है जिसमे त्रिवेदी साहब बजट पेश करते है और ममता उसका विरोध कही न कही यह ममता बनर्जी की देश के सामने खुद की बेहतर तस्वीर दिखाने की कोशिश हो सकती है जिसमे वह खुद को देश के प्रदेश के लोगो के सामने मसीहा साबित करने में लगी है और समय -समय पर खुद को एक राष्ट्रीय नेता की तरह उभार रही है जो समय समय पर देश की गरीब जनता का मसीहा बन कर सामने आता है जिसमे तेल के बढे दाम को घटवाना हो या फिर ऍफ़ डी आई का विरोध कर खुद को देश के व्यापारी हितेषी साबित करना हो या फिर रेल के बढे किरायो पर अपने मंत्री का इस्तीफे के लिए दबाव बनाना हो . टोटल मिलाकर एसा कहा जा सकता है की ममता २०१४ की तयारी में जुटी हुई है और खुद को राष्ट्रिय सत्र का नेता साबित करने में लगी है जिस प्रकार से नितीश कुमार की छवि देश के सामने विकास पुरूष के रूप में सामने आई है ठीक उसी प्रकार से ममता के इन तेवरों की वजह से ममता ने खुद को राष्ट्रीय राजनीति की दहलीज़ पर तो ला खड़ा किया है . यदि एसा कहा जाए की ममता पीएम के सपने देख रही है और तृणमूल का दायरा बढ़ा रही है तो गलत नही होगा चुकी आने वाला समय न सिर्फ राष्ट्रीय पार्टियों के अस्तित्व के लिए खतरनाक है बल्कि क्षेत्रीय नेताओं के लिए फायदेमंद भी है जिसमे लालू से लेकर मुलायम नितीश – ममता सभी को सपने देखने का हक़ है .

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