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यदि हमारे देश में बुराई देखि जाए तो बहुत मिलेंगी लेकिन मै समझता हूँ हमारे देश की सबसे बड़ी बुराई है जन्म से जातिवाद चुकी जन्म आधारित जातिवाद ने न सिर्फ हमारे देश को तोड़कर रख दिया है बल्कि नफरत को फैलने में भी सहयोग दिया है . पता नही कैसे हमारे देश में जन्म लेते ही कोई ब्राह्मण हो जाता है और बड़े होने के बाद यदि उसमे लाख बुराई रहे शराब पिने की आदत या जुआ खेलने की या फिर मास का सेवन करने तक की या फिर किसी भी तरह की लत लेकिन वह अपना पूरा जीवन ब्राह्मण बनकर गुजरता है और हमारा समाज ऐसे व्यक्ति को पंडित जी कहने में संकोच नही करता चुकी उसने किसी ख़ास गोत्र में जन्म लिया होता है . जब की किसी भी और जाती में जन्म लेने वाला व्यक्ति यदि उसमे ब्राह्मण के गुण है आचार ,विचार वयवहार सब कुछ शुद्ध होते हुए और भारतीय संस्कृति का सम्मान करते हुए भी वह ब्राह्मण नही कहला सकता जब की असली ब्राह्मण तो वाही है जो ब्रह्मन्त्त्व को अपने जीवन में उतारे वैसा वयवहार करे . लेकिन जन्मजाति के तमगे ने कर्म को कही पीछे धकेल दिया है और जन्म से ही जाती या वर्ण का सर्टिफिकेट देने का काम किया है जिसकी वजह से एक बुरे से बुरा इंसान बुरे कार्य करते हुए भी खुद को सरवन या उच्च कुल का कहता है चुकी हमारे समाज में आज इंसान के कर्मानुसार न तो उसे आदर दिया जा रहा है और न ही अभद्र -असभ्य वय्ह्व्हार करने वाले को उसका सही स्थान दिया जा रहा है . जब की मेरा मानना सपष्ट है किसी भी जाती का इंसान उसके कर्म के अनुसार अपनी जाती तय करता है यदि कोई शुद्र जाती में जन्म लेता है तो भी वह ब्राह्मण ,क्षत्रिय या वश्य का जीवन जी सकता है बशर्ते उसके कर्म वैसे हो चुकी हमारा देश कर्म प्रधान है इसलिए जन्म से किसी भी इंसान की जाती तय नही होनी चाहिए बल्कि उसके कर्म से ही जाती वर्ण तय हो तो बेहतर है . हमें वर्तमान में चल रही जातीय वयवस्था को बदलना होगा नही तो यह कर्म करने वालो और गीता के सन्देश से अन्याय होगा .
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