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आतंकी से बेहतर है बाबा बन जाना !

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पिछले कुछ दिनों से मिडिया और इन्टरनेट पर बवाल है इस बात को लेकर की नर्मल बाबा भक्तो से २००० रुपया लेते है ! जिसका जैसे गुस्सा निकलता है वह निकल रहा है ब्लोग्गर बंधू लेख से मीडिया खबरों की सनसनी से तो आम जनता सडको पर और साधू – संत न्यूज़ चनलो के स्टूडियो पर ! लेकिन सवाल यह उठ्त्ता है की निर्मलजीत सिंह नरूला निर्मल बाबा बन कैसे गये !

कई बार सुनने में आता है की मुसलमानों में शिक्षा की कमी और गरीबी उन्हें आतंकवादी बनने पर मजबूर करती है ! गरीबी और निर्मल बाबा का भी नाता रहा है आज तक को दिए इंटरव्यू में वह बार – बार यही बतलाने की कोशिश कर रहे थे की उन्होंने बहुत ही कष्टपूर्ण दिनों को देखा है ! झारखंड में एक परिवार ने उन्हें भगोड़ा करार दिया है। निर्मल बाबा ने उस परिवार के मकान में रहते हुए मकान मालिक को किराया भी नहीं दिया और ताला लगाकर भाग गए। वही निर्मल बाबा ने एक ईट का भट्ठा भी लगाया लेकिन उसमे सफल नही हुए ! गढ़वा में कपड़ा का बिजनेस किया. पर इसमें भी नाकाम रहे ! बहरागोड़ा इलाके में माइनिंग का ठेका भी लिया ! निर्मल बाबा का झारखंड से पुराना रिश्ता रहा है. खास कर पलामू प्रमंडल से. 1981-82 में वह मेदिनीनगर (तब डालटनगंज) में रह कर व्यवसाय करते थे. चैनपुर थाना क्षेत्र के कंकारी में उनका ईंट-भट्ठा भी हुआ करता था, जो निर्मल ईंट के नाम से चलता था ! यदि निर्मल बाबा की पूरी जिन्दगी को देखा जाये तो उनमे एक असफल व्यापारी की छवि नजर आती है और यही कष्टों भरे दिन जब आज तक पर बाबा को याद आये तब भी बाबा से भावुक हुए बिना नही रहा गया ! इन्ही असफलताओं ने जालन्धर से झारखण्ड से दिल्ली के सफर तक निर्मल सिंह नरूला का साथ चोली दामन का बना रहा ! ऐसे नाजुक हालत और असफलताओं का परिणाम है की एक असफल व्यापारी निर्मलजीत सिंह नरूला निर्मल बाबा बन गया जो आज ! करोडो के वारे न्यारे कर रहा है !

कुछ लोग बाबा को ठग कहने को आजाद है तो कुछ अन्धविशवासी तो कुछ भारतीय परम्पराओं को ठेस पहुचने का दोषी ! लेकिन फिर भी गरीबी के कारण आतंकी या माओवादी होने से कही बेहतर है ठग बाबा का जीवन वय्तित किया जाये ! चुकी इसमें दुसरे के जीवन को बेहतर बनाने के लिए खीर से लेकर गोल – गप्पे खाने की बाते की जाती है न की गोली – बारूद से किसी को कत्लेआम करने की !

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