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काश ये जाती न होती !

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मै समझता हूँ आचार्य चाणक्य यदि ब्राह्मण न होते तो वह समस्त भारतीयों के लिए आदर्श होते ! आदर्श तो वह आज भी हैं लेकिन उन लोगो के लिए जो जाती से उपर उठकर सोचते हैं ! सुदामा ब्राह्मण न होते तो मित्रता की ऐसी मिसाल पूरे विश्व में कही न देखने को मिलती जो कृष्ण – सुदामा की थी ! गुरु बाल्मिक यदि बाल्मिक न होते तो पूरा देश उनकी पूजा करता ! राम यदि राजपूत न होते तो वह आज भी सभी लोगो की आत्मा में बसते ! यदि कृष्ण यादव न होते तो हर घर गीता के ज्ञान से अज्ञानता रूपी अन्धकार को भगाता ! महराना प्रताप ,भगत सिंग , रानी लक्ष्मी बाई , मंगल पाण्डेय , की कोई जाती न होती तब हर किसी के दिलो – दिमाघ में इन्ही की क्रांतिकारी विचारधारा की लोह आज भी जलती रही होती !
कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है उपर लिखित सभी महापुरुष सम्पूर्ण भारत वर्ष के लिए आज भी एक आदर्श हैं , मिसाल हैं ! लेकिन इन सभी को जिस तरह से किसी एक ख़ास जाती में जन्म लेने वाला दिखाया गया है वह कही न कही इन सभी को दायरों में सीमाओं में बाँधता है और मोका देता है घात लगाकर बैठे उन सेकुलर लोगो को जिनका मकसद देश को बाटना है !
आज हमारे भारत वर्ष में जन्माधारित जाती की वजह से हर इंसान अपनी जाती का भगवान चाहता है , शहीद चाहता है महापुरुष चाहता है ………जिस पर वह इतरा सके ! कई लोग एक दुसरे को नीचा दिखाते हैं तो कुछ मायूस रहते हैं ! चुकी उनको लगता है उसकी जाती को वह मान -सम्मान नही मिला जिसका वह हकदार है …………….कोई कहता है गुरु रविदास को वह सम्मान क्यों नही मिला जो राम को ! कोई कह रहा है परशुराम तो राम से भी बड़े थे ! कूल मिलाकर आज हमारे देश के लोग जाती के ऐसे जाल में फसे हुए हैं जिसमे हर इंसान के अंदर एक हीन भावना है ! जिसे हवा देने का काम विदेशी शक्तिया कर रही हैं ! जिसके चलते हमारे देश के असंतुष्ट लोग हिन्दू धर्म को कुछ ख़ास जातियों के वर्चस्व वाला धर्म मानने लगे हैं ! कोई तुछ मानसिकता के तहत इसे उची जातियों का बताता है तो कोई मात्र ब्राह्मणों का ! ……………………………………………
मुल्ला – मोलवी और पोप मंडली यही सब बताकर भड़काकर हिन्दुत्त्व अथवा भारत पर प्रहार कर रहे हैं ! धर्मान्त्र्ण को बढ़ावा दे रहे हैं
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80 % प्रतिशत बहुसंख्यक आबादी होने के बावजूद भी चंद मुट्ठी भर लोग हमें गरियाते हैं , राम के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं , गंगा को खत्म करने की साज़िशे रचते हैं , रामसेतु को तोड़ने की कोशिश करते हैं , राम मंदिर को कोर्ट के मानने के बावजूद एक ढांचा अथवा मस्जिद बताते हैं , अमरनाथ यात्रा को अंधविश्वास बताते हैं तब भी हम उनका कुछ नही बिगाड़ पाते अथवा कोई विरोध नही कर पाते तब भी हमें ये जाती ही कमजोर करती है , बाटती है !
जाती मुसलमानों में भी हैं शिया और सुन्नी में खुनी जंग होती रही है लेकिन धर्म के नाम पर अल्ला के नाम पर दोनों एक हो जाते हैं ! इसाई अश्वेत – श्वेत भूल जाते हैं ! लेकिन हम ……….
हम तो बंध चुके है जातिवाद की मानसिक्त में कोई हमारे धर्म की बारे में कुछ कहे तो हम क्या सोचते हैं राम तो राजपूत थे रविदास के बारे में बोलकर दिखाए न इसकी तो अभी ………
मै दावे के साथ कह सकता हूँ यदि किसी भी भगवान अथवा महापुरुष , शहीद का इतिहास जातिवादी मानसिकता के तहत न लिखा गया होता तो आज भारत संघठित होता ……….

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