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कोई जमाना था जब विज्ञापनों में भी सन्देश छुपा होता था ! लेकिन आज जमाना कुछ अलग है सभी को कुछ अलग , कुछ नया करना है ! इसी अलग करने की चाहत में कोई ऊँचे- ऊँचे स्टंट कर रहा है तो कोई अश्लीलता परोस रहा है तो कोई गलत भाषा का प्रयोग कर रहा है ! कुछ दिनों पहले बना एक विज्ञापन जो की कोल्ड ड्रिंक्स कम्पनी सप्राईट्स का है ‘ कैसे इसको झेलू मै , कैसे इसकी लेलू मै ‘ ने भी भाषाओं की सभी मर्यादाओ को पार करने का काम किया ! टेलिकॉम कम्पनी वोडाफोन का भी पिछले दिनों एक विज्ञापन टीवी चैनलों पर देखने को मिला जिसमे कोमल चंचल भावनाओं को ‘ रोमांस ‘ के रूप में दिखाने की भद्दी कोशिश की गई ! जिसे लेकर बवाल भी मचा और शबाना आजमी ने इस विज्ञापन को लेकर ट्वीट किया ,,,मै ‘ डिस्टर्ब ‘ हूँ ………….
वोडाफोन कंपनी जिस देश में पैदा हुई है और अपने फायदे का बड़ा हिस्सा जहां पहुंचाती है उस ब्रिटेन की एक बड़ी समस्या है. वह समस्या यह है कि वहां लड़किया 12 वर्ष की उम्र में मासिक धर्म धारण कर रही हैं. जिसका परिणाम यह है कि ब्रिटेन में बचपन बहुत जल्दी खत्म हो रहा है! शायद वोडाफोन का इस तरह का विज्ञापन भारत में भी यही बदलाव ला सकता था चुकी विज्ञापन या टीवी पर प्रसारित कोई भी धारावाहिक अथवा फिल्म सभी हम पर और बच्चो पर मानसिक रूप से प्रभाव छोड़ते हैं कही न कही उनका असर हमारी जिन्दगी पर भी पड़ता है ! वही प्रभाव हमारी जिन्दगी का हिस्सा बनने लगते हैं ! जिस तरह से रिनोल्ड पैन की मशहूरी में एक बच्चा बोलता है ‘ सब कुछ दिखता है ‘ वैसे ही गाव – शहर में भी एक चलन चलने लगता है और बच्चो की जुबान पर यह डाएलोग आने लगता है !
लेकिन सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है की जो टीवी चैनल महिलाओं के हक़ के लिए धारवाहिक बनाता है नारी के सम्मान की लड़ाई लड़ने की बात करता है ऐसे घटिया विज्ञापन उन्ही टीवी चैनलों पर दिखाए जा रहे हैं ! जब की ऐसे विज्ञापनों से सबसे अधिक महिलाओं का ही अपमान होता है ! क्या मीडिया और बाकी टीवी चैनलों को ऐसे आपत्तिजनक अभद्र , असभ्य , अश्लील महिलाओं की छवि और देश की संस्कृति को बिगाड़ने वाले अश्लीलता फैलाने वाले विज्ञापनों पर रोक नही लगानी चाहिए ?
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