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घर से कुछ दूर चला तो एक लड़की देखी
कोमल त्वचा , छरहरी सी काया
मन तो चंचल है, रोके रुका नही
जाकर उससे मैंने बोला
क्या नाम है तुम्हारा
उसने प्यार से कहा कविता
उसकी आवाज जब कानो में पड़ी
मैंने उससे कुछ और जानना चाहा
मन में एक डर लेकर कोई मुझे देख न ले
मै चला उसके पीछे -पीछे
उसने मुझसे कहा तुम जाओ यहाँ से
मैंने कहा मुझे कुछ बातें करनी हैं तुमसे
आगे चला मैंने उसके बारे में सब कुछ जानना चाहा
मै चलता गया , वो भी चलती गयी
सामने देखा तो एक दोस्त आ रहा था
उसने पुछा अरे विकास यहाँ कैसे
मैंने कोई जवाब न देकर उलटे पूछा उससे
तुम यहाँ कैसे , और चल दिया उसके साथ
लेकिन अब भी वह लड़की यादो में बस्ती है
उसका रुमाल से ढका चहरा एक सस्पेंस बना हुआ है
उसकी कुछ बातें जब भी याद आती हैं
बड़ी तन्हा लगती है जिन्दगी
काटने लगती हैं अपने कसबे की गलिया
लगता है अभी वह आएगी और
मै उसके बारे में कुछ जान सकूंगा
लेकिन वो तो आती नही
हर बार याद आती है वो
और उसकी कुछ दो चार मिनट की बातें
लेकिन एक बात अब तक समझ नही पाया
एक एसा इंसान जिसका हमने ठीक से चेहरा
भी नही देखा , बस आवाज सुनी है
उसके लिए मन में इतनी जगह कैसे और क्यों बन जाती है ?
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