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आखिर कैसे पनपता है जातिवाद ?

ajad log
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जिस समय कोई जीव पैदा होता है उसकी क्या जात होती है ! उस बेजुबान बालक की क्या जाती होती है ! ………..कुछ भी नही ………….वह मात्र एक जीवात्मा होती है जिसे इश्वर ने कर्म करने के लिए इस धरती पर भेजा है ! जिसको उस इश्वर ने सभी कुछ दिया है पशु , पक्षियों , कीड़ी , मकोडो , साँपों ,से अलग …………………………………………..
उसके कर्म ही उसे महानता की मिसाल बनाते हैं ! लेकिन वर्तमान युग कुछ उलटा है शायद बचपन से ही तय हो जाता है की वह बालक किस श्रेणी का है ! बचपन से ही उसके मन में जातिवाद का बीज बो दिया जता है ! यदि ऊँची जाती में पैदा हुआ तो वह बचपन में ही अलग है उंचा भी ! यदि नीची जाती में हुआ तो बचपन में ही नीच है ! बचपन में ही जब उस बालक को सही ढंग से – क ख ग भी नही आते तभी से हमारा भारतीय समाज उसे उसकी जात उसके दिमाघ में डाल देता है उंच- नीच भेद भाव का बीज बचपन में ही परिवार अथवा समाज दवारा डाल दिया जाता है …………………..

जब वह बालक १० बारह साल की उम्र में आता है तब खासतोर से ग्रामीण इलाको में तभी से उसके अंदर घर – परिवार की सिखाई हुई बातें अपना असर दिखाना शुरू करने लगती हैं ! किसी दुसरे छात्र को जातीय अपशब्द कहना उसका मजाक उड़ाना यह सब उसके शोक बनने लगते हैं !ऐसी स्थिति में कई छात्रों का एक साथ रहना हो जाता है घूमना हो जाता है जो की एक ही जाती के होते हैं ! बाल उम्र में ही क्लास में जो जातिया कम हैं उनका शोषण ऐसे बालक करने लगते हैं …………………………………………..
जब वही बालक ( छात्र ) दसवी – बारवी में पढने लगते हैं तब जाकर वही जातीय मानसिकता वर्चस्व ( चोधर ) की लड़ाई में बदलने लगती है !
जिस जाती के छात्र अधिक होते हैं उनका आये दिन झगड़ा करना दूसरी जाती वालो से शोक बन जाता है ! कोलेजो में भी यही सब होता है कोलेज में प्रधान की न्युक्ति भी जाती ही तय करती है ……………………………………………………
दूसरी और कोलेज सकूलो के जीवन से हटकर समाज में जातीय सम्मेलन चलते रहते हैं ! जैसे फलां जाती का जाग्रति सम्मेलन , आरक्षण की मांग , रोड जाम , बसे फुकना गाडियों को आग लगाना ! इस तरह के सम्मेलनों में नया खून यानी हमारी नई पीढ़ी अपना शक्ति पर्दर्शन करती हैं ! हजारो की भीड़ दुकानों , फैक्ट्रियो में भी आग लगा देती है ! जिससे व्यापारियों को नुक्सान होता ही है साथ उस जाती के प्रति दूसरी जाती का भडकाव भी पैदा होता है …………………………………………………
सभी उस जाती के खिलाफ कानूनी करवाई चाहते हैं लेकिन ऐसी जातियों के लोग देश – प्रदेश की तुच्छ राजनीति के चलते मारपीट और हिंसा का परमिट प्राप्त होते हैं अतः उन पर कारवाई कम ही होती है ! …………………………………………….
इसी स्थिति में वक्त करवट लेता है और बाकी जातियों में उस जाती के प्रति या तो अधिक रोष उत्पन्न कर देता है अथवा बाकी जातियों को उस जाती के प्रति हिंसात्मक कदम उठाने पर मजबूर करता है ! ऐसे हालात में जातीय हिंसा भड़कती है और जानमाल का नुक्सान और अधिक होता है ! एक दुसरे के प्रति भाईचारे की भावनाए खत्म होने लगती हैं जीव – जीव से कटने लगता है हर इंसान पर जाती की मोहर लग जाती है दिल बट जाते हैं ! और ऐसे ही पनपता जाता है हमारे भारतीय समाज में जातिवाद ! जिसकी मूल जड़ हमारे विचार हैं जिनको हमारे माँ – बाप , दादा -दादी , अथवा समाज के लोग ही हमारे बहतर डालते हैं और हर इंसान इन्ही रुढ़िवादी विचारो की वजह से एक – दुसरे से बटता जा रहा है !

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