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प्यासे हैं पशु ………

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इस गर्मी में पानी अमृत के समान है ! रिकोर्ड तोड़ गर्मी में पानी जितना पियो उतना कम है हर बीस – पच्चीस मिनट में गला सुख जाता है और पानी पिने का मन होता है ! इंसान तो फिर भी गिलास , बोतल , या वाटर कूलर , प्याऊ स पानी पि सकता है लेकिन इस बेहाल आग जैसी तपती गर्मी में बेचारे पशु कैसे पानी पिए ………………………………………
पहले लोग जब इंसानों के लिए प्याऊ अथवा टैंकी बनाते थे तब एक होंद पशुओ के लिए भी बना दी जाती थी लेकिन बदलते परिवेश में प्याऊ का जमाना पीछे छूट रहा है और वाटर कूलर का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है ! कारण आजकल ऐसे लोगो की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है जिनके गले से फ्रिज का पानी ही उतरता है दूसरी वजह की वाटर कूलर में झंझट बाजी नही है! लेकिन इस तरह का चलन पशुओ को प्यास से मार रहा है …….
इस साल तो इंद्र देवता भी नाराज हैं बरसने का नाम ही नही ले रहे ! इंद्र देवता बरस जाये तो बेचारे पशुओ को पानी मिल जाये खड्डों में पानी एकत्रित हो जाए जिससे पशुओ की प्यास बुझ जाए ………………………………………………………लेकिन अफ़सोस जैसे इंसान का दिल पत्थर का हो चुका है वैसे ही इंद्र देवता का भी शायद ! पशु भटक रहे हैं , आँख से आंसू झलक रहे हैं , कभी सब्जी वालो की दुकानों पर मुह मारते हैं तो कभी ठेलो पर , लेकिन वहा भी लाठी मिलती है ! गलियों में घूमते हैं शायद उन्हें कोई पानी दे लेकिन उन्हें रोटी तो मिलती है पानी नहीं !
एसा लगता है मानो समूची इंसानियत मर चुकी है , एसा लगता है की सभी ने अपने घर के सदस्यों को ही संसार मान लिया है , सम्पूर्ण सृष्टि मान लिया है !
वैसे तो हम गाय को माता कहते हैं और बैल को भगवान शंकर जी का नंदी लेकिन ये दोनों ही प्यासे हैं इनके लिए हम करते क्या हैं ! जब हम खुद पानी पीते हैं उसी के सहारे इस भीषण गर्मी में जीते हैं तो अपनी माता गाय और भगवान शंकर जी के नंदी को पानी क्यों नहीं देते ?

वे भी प्यासे हैं आओ हम पशुओ को पानी पिलाये , जब भी घर के बाहर कोई पशु आये उसे लाठी नही पानी पिलाए यही मानव धर्म है और यही मानव सभ्यता और यही सनातम है और यही हिन्दुत्त्व ……………….

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