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बचपन में हमें पढ़ाया जाता था ‘ गाय हमारी माता है ‘ उसे गाय का प्रस्ताव बोला जाता था ! आज भी देश के साधू – संत हमें यह बताते हैं की गौ में इतने देवी – देवता हैं ! घर में भी जब माँ जीती थी तब गौ की रोटी जरुर निकालती थी ! दरअसल पढ़ा लिखा हो अथवा कोई अनपढ़ जिसमे भी संस्कार हैं वह गाय को माता ही मानता है ! कृष्ण भगवान को भी गाय अत्यधिक प्रिय थी ! गाय का न सिर्फ धार्मिक महत्व है अपितु वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है गाय ! गाय का घी , दूध , दही सब कुछ कई असाध्य रोगों में लाभकारी है ! गाय का गोबर , मूत्र भी कई तरह की करीम , पेस्ट , और दवाइयों में उपयोग किया जाता है ! वास्तु में भी गौ मूत्र का महत्व है बताया जाता है की गौ मूत्र की बुँदे नीम की पत्तियों से छिड़कने से वास्तुदोष शांत होता है वही बजुर्ग लोग ये भी बताते हैं की घर या दूकान के आगे गौ माता पेशाब या गोबर कर दे तो वह भी अत्यंत लाभकारी होता है !
इतना सब होने के बावजूद भी गौ माता 80 करोड़ हिन्दुओ के देश में दर – दर भटक रही है ! जिस समय गौ माता बूढी हो जाती है उसे माता कहने वाले लोग कुछ रुपयों के लिए बेच डालते हैं और खरीददार इन्हें बुच्चाड्खानो में पहुचा देते हैं जहा पर गऊ के साथ न सिर्फ अत्याचार होते हैं बल्कि गऊ की चमड़ी को भी बेच दिया जाता है ! जिससे चमड़े के जूते , सैंडल , बेल्ट बनाये जाते हैं ! लेकिन अफ़सोस की उन्हें हम जैसे लोग ही पहनते हैं जो ताउम्र गाय को मैया बुलाते हैं !!
उपर जो तस्वीर आप लोग देख रहे हैं ये तस्वीर मेरे कसबे की है जहा गऊ माता के बछड़े धुप से बचने के लिए जगह तलाश रहे हैं ! चुकी कसबे में गौशाला नही है जिस तरह ये बछड़े बैठे हैं उसी तरह गऊ माता भी धुप से बचने के लिए पेट भरने के लिए भटकती है ! दरअसल ये तस्वीर मात्र मेरे कसबे की ही नही है ये सच्चाई है उस भारत की जिसमे ८० करोड़ बहुसंख्यको की गऊ माता पेट भरने के लिए गर्मी से बचने के लिए ऐसे ही भटकती है ……………………………………
कई बार वृन्दावन जाना होता है तब समझ में आता है की आखिर गऊ माता की अनदेखी क्यों हो रही है ! तब समझ में आता है की हिन्दू किस विचारधारा के तहत चल रहे हैं बड़ी – बड़ी धर्मशालाए बनाना , उनका लक्ष्य है जिसमे उनके माता – पिता का नाम किसी प्लेट पर लिखा हो जिससे उनका रूतबा बढे ! हो सकता है उन धन्ना सेठो ने हरिद्वार , मथुरा , वृन्दावन में सेवा भाव से भी उन धर्मशालाओ को बनाया हो लेकिन समय बीतते – बीतते वह पंडो के धंधो में तब्दील हो रही हैं ! जहा यात्रियों से रहने की भारी फीस वसूली जाती है ! शहर – कस्बो में भी कई समितियां बन गयी हैं जो उस शहर के नाम से धर्मशालाए धार्मिक स्थलों पर बनाती हैं ! ऐसी व्यवस्था भी कमाल की होती है हर दुकानदार अपनी श्रद्धा के मुताबिक पैसा देता है महीने का और वह पैसा धर्मशालाओ पर खर्च होता है ! लेकिन अफ़सोस की ऐसी वयवस्था गऊ माता की सेवा के लिए कोई समिति कोई दल क्यों नही करता ? जिस तरह से धर्मशालाओ के नाम पर दुकानदारों से 2100 , 5100 , 11000 , 1100 ,500 , 100 , 50 का सहयोग लिया जाता है क्या वैसे ही गौशाला के निर्माण के लिए दुकानदार या नोकरिपेशा वालो से सहयोग की उम्मीद नही की जानी चाहिए ? जिस देश में लोग साईं के मंदिर में 21 लाख का मुकुट चढाने का मादा रखते हो क्या उस देश में 21 हजार गौशाला के लिए नही निकाल सकते ! जवाब है दुकानदार भी गौशाला के लिए सहयोग कर सकते हैं और नोकरिपेशा वाले भी ! लेकिन आवाज कोन उठाये ? मंदिरों के नाम पर पुजारी लोगो ने समितिया बनाई और धर्मशालाओ के नाम पर भक्त लोगो ने समितियां बनाई ! तो गऊ माता के नाम पर क्यों नही ! जब की गऊ माता का दूध , घी , और मूत्र भी आज मार्किट में बिक रहा है ! जहा एक और यह धर्म का काम है वही गाव , कस्बो में रोजगार भी पैदा हो सकता है ! तो अब सवाल यह है की हिन्दुओ को यह समझाए कोन ? मै समझता हूँ सभी हिन्दू संघठनो और साधू संतो को ही यह पहल करनी होगी ! शहर – शहर गाव – गाव जाकर गऊ के न सिर्फ महत्व को बताना होगा अपितु उससे जो रोजगार पैदा होगा बेरोजगारी दूर होगी उससे भी परिचित करना होगा ! यदि हिन्दू संत – संघठन – नेता गऊ के महत्व को बताते हैं समझाते हैं तो न सिर्फ रोजगार बढेगा बल्कि गऊ माता भी सुरक्षित रहेगी !
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