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सभी दोस्तों और बड़ो को नमस्कार . काफी साल बाद कुछ लिखने जा रहा हूँ पहले तो एकाध लेख को छोड़कर सभी बेकार किस्म के लेख लिखे थे आज फिर से कोशिश करते है आप सभी का आशीर्वाद रहा आज की कविता आप सभी को अच्छी लगेगी क्यों की यह आज की पत्रकारिता पर है ..
कभी चली थी मै देश के लिए
हमेशा सर झुका कर चली मैं , लेकिन गद्दारो , बेईमानो को भी झुकना पड़ा
मै वही कलम हूँ जो गुलामी में चली
वही हूँ जिसने आजादी दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई
जिसने मुझे चलाया झुकाकर ही चलाया
मेरा सर जब भी झुका देश के गरीब , दबे – कुचले लोगो के सरो को उठाने के लिए
मुझे सर झुकाकर जो सम्मान मिला
अब वो बात नही
छुपकर लिखते थे , लिखते थे सच्चाई
पर अब कुछ लोगो ने धंधा बना लिया है मुझे
ब्लैकमेलिंग का जरिया बना लिया है मुझे
सच छुपाने का औजार बन कर रह गयी हूँ मै
चंद सिक्को के लिए मुझे बीच बाजार झुका दिया है
इतना तो मै कभी न झुकी थी
कलम चलने वालो ने मुझे अपनी नजरो में झुका दिया है
मुझे चलने वाले फर्श से अर्श पर पहुंच गए
लेकिन आज भी मै झुककर चल रही हूँ
सच बोलने की ताकत मुझमे अब भी है
लेकिन वो कहाँ है लोग जिनमे सच लिखने की ताकत हो
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